स्कूल खासतौर पर कॉलेज लेवल पर बहुत सी एक्टिविटीज होती हैं, जो भविष्य में न सिर्फ नौकरी और व्यक्तित्व विकास में सहायक होती हैं, बल्कि कैरियर विजन तैयार करने में भी अहम भूमिका निभाती हैं।
कॉलेज व स्कूल लाइफ में पढ़ाई के अलावा कई एक्टिविटीज होती हैं, जैसे एनसीसी, एनएसएस, स्काउट, स्पोट्र्स, कल्चरल प्रोग्राम्स वगैरह वगैरह। इनमें से कुछ आपको आत्मनिर्भर और अनुशासित बनाने के साथ सरकारी नौकरियां भी दिलाती हैं, तो कुछ यह जानने में मदद करती है कि आपकी मानसिक बनावट कैसी है और किस क्षेत्र में अच्छा कर सकते हैं। आपका आगे का रास्ता आसान हो जाए, इसलिए यहां जानते हैं इन एक्टिविटीज और इनसे मिलने वाले फायदों के बारे में।
एनसीसी
डिफेंस फील्ड में भविष्य बनाने के सपने को हकीकत में बदलने की शुरुआत आप एनसीसी (नेशनल कैडेट कोर) से कर सकते हैं। स्कूल स्तर पर एनसीसी (जेडी) ज्वाइन कर ए सर्टिफिकेट और कॉलेज में एनसीसी (एसडी) ज्वाइन कर बी और सी सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकते हैं। तीन साल की ट्रेनिंग के बाद ही सी सर्टिफिकेट मिलेगा। एनसीसी डीजी ऑफिस से कर्नल आर. एस. छेत्री ने बताया कि एनसीसी में रेगुलर मोड से पढ़ाई करने वाले छात्र ही आ सकते हैं। एनसीसी टे्रनिंग न सिर्फ युवाओं में लीडरशिप, डिसिजन मेकिंग, कमांड ऐंड कंट्रोल, एकता व अनुशासन जैसी स्किल्स विकसित करती है, बल्कि इसके बी और सी सर्टिफिकेट के जरिए डिफेंस फोर्सेज में नौकरी भी मिलती है। हर साल आईएमए, देहरादून में एनसीसी से ६४ कैडेट्स का चयन किया जाता है। नेवी (६ पद) और एयरफोर्स (१० प्रतिशत) में भी इनके लिए कुछ पद आरक्षित रहते हैं। साल में दो बार एनसीसी स्पेशल एंट्री स्कीम भी निकलती है, जिसके जरिए बिना यूपीएससी की सीडीएस लिखित परीक्षा दिए सीधे ओटीए (चेन्नई) एसएसबी इंटरव्यू के लिए जा सकते हैं। यहां लड़कियों के लिए २० प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। लेकिन एनसीसी स्पेशल एंट्री के लिए ग्रेजुएशन में ५० प्रतिशत अंक होने चाहिए। यही नहीं, आजकल रिलायंस, सहारा, ताज, रेडिसन जैसे कई बड़े-बड़े प्राइवेट ग्रुप भी एनसीसी सी सर्टिफिकेट होल्डर्स और फ्रैश ग्रेजुएट्स को सिक्योरिटी डिपार्टमेंट में नौकरी दे रही हैं। एयलाइंस व एयरपोर्ट पर भी इन्हें काम मिल रहा है। १० से १२ हजार रुपये से यहां शुरुआत होती है। पैरा मिलिट्री फोर्सेज और पुलिस में इन्हें प्राथमिकता मिलती है। कई विश्वविद्यालयों में एनसीसी कोटे से पीजी स्तर पर दाखिला मिलता है। ज्यादा जानकारी के लिए द्धह्लह्लश्च://ठ्ठष्ष्द्बठ्ठस्रद्बड्ड.ठ्ठद्बष्.द्बठ्ठ/ देखें।
खेल-कूद
खेल-कूद में हिस्सा लेने न सिर्फ आपको यूनिवर्सिटी में दाखिले में छूट मिलेगी बल्कि स्पोट्र्स कोटे से सरकारी नौकरी पाने का भी अवसर है। आज अमूमन हर यूनिवर्सिटी के अंडरग्रेजुएट कोर्सेज में स्पोट्र्स कोटे से दाखिला होता है। इलाहाबाद यूनि. के फिजिकल एजुकेशन के विभागाध्यक्ष व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. दिनेश चंद्र लाल ने बताया कि नेशनल/ऑल इंडिया, स्टेट या यूनिवर्सिटी लेवल पर खेलने वाले स्पोट्समैन को डिफेंस फोर्सेज, पुलिस में नौकरी में प्राथमिकता मिलती है। रेलवे जैसे कई सरकारी विभागों में स्पोट्र्स कोटे से विशेष भर्तियां निकलती हैं। जूनियर या सब-जूनियर लेवल पर गोल्ड मेडल विजेता इलाहाबाद जैसे कई विश्वविद्यालयो में सीधे बीपीएड में प्रवेश ले सकते हैं। स्टूडेंट वेलफेयर ऑफिसर के लिए पोस्ट ग्रेजुएशन और ऑल इंडिया इंटरवर्सिटी लेवल स्पोट्र्स सर्टिफिकेट चाहिए। स्पोट्र्स ऑफिसर भी बन सकते हैं। बीपीएड के बाद एम.फिल या पीएचडी कर टीचिंग का विकल्प भी है। इन दिनों प्राइïवेट फम्र्स भी स्पोट्समैन को जॉब्स दे रही हैं। जिम्स में सर्टिफाइड फिटनेस ट्रेनर को ही रखा जा रहा है। ऐसे में स्पोट्समैन के लिए फिटनेस ट्रेनर, स्पा थेरेपिस्ट और फिटनेस फॉर लैंसर के तौर काम किया जा सकता है।
एनएसएस
युवा एवं खेल मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली एनएसएस यानी नेशनल सर्विस स्कीम, का लक्ष्य सामाजिक गतिविधियों के माध्यम से युवाओं के व्यक्तित्व का विकास और उन्हें जागरुक बनाना है। ११वी-१२वीं और कॉलेज में पढ़ाई के दौरान छात्र इसका हिस्सा बन सकते हैं। एनएसएस के उप-कार्यक्रम सलाहकार सतीश कुमार साहनी ने बताया कि एसएस सर्टिफिकेट होल्डर्स को हायर स्टडीज में प्राथमिकता मिलती है। जामिया और गुरु नानक देव जैसी देश की विभिन्न यूनिवर्सिटीज में इनके लिए दो से पांच प्रतिशित सीटें आरक्षित रखी जाती है। स्कीम द्वारा समय-समय पर आयोजित रक्तदान शिविर, राष्ट्रीय एकता शिविर, टीकाकरण और पौधारोपण अभियान जैसे कार्यक्रम चलाए जाते हैं। युथ एक्सचेंज प्रोग्राम्स होते हैं, जिसमें वोलियंटर्स को न सिर्फ देश में, बल्कि विदेश में भी जाने का मौका मिलता है। एड्स और डिसास्टर मैनेजमेंट प्रोग्राम्स का हिस्सा बनकर काफी अच्छा अनुभव मिलता है। हालांकि इसका जॉब में तो फायदा नहीं है, लेकिन इसके अनुभव से आपका व्यक्तित्व, आत्मविश्वास और ज्ञान में जो वृद्धि होगी, वह जीवन के हर मोड़ पर काम आएगा।
भारत स्काउट्स ऐंड गाइड्स
भारत स्काउट्स ऐंड गाइड्स स्कूल और कई स्थानों पर कॉलेज स्तर पर पढ़ाई कर रहे युवाओं को टे्रनिंग देता है। भारत स्काउंट्स ऐंड गाइड्स के डायरेक्टर बिनोद कुमार बहुगुणा ने बताया कि यहां ट्रेंड युवाओं के लिए भारतीय रेलवे में ग्रुप सी और डी में अलग से जॉब निकलती हैं। रेलवे में स्काउट्स ऐंड गाइड्स कोटे (प्रेजीडेंट स्काउट/गाइड/रेंजर/रोवर या हिमालयन वुड बैच होल्डर या एचडब्लूबी ट्रेंड स्काउट लीडर) से संबंधित भर्तियां निकलती रहती हैं। नेशनल लेवल या स्टेर लेवल की इवेंट में भी पार्टिसिपेशन होना चाहिए। भारत स्काउट्स ऐंड गाइड्स सरकारी संस्था नहीं, बल्कि एक एनजीओ है, जो विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर, अनुशासित और बेहतर नागरिक बनाता है। स्काउट प्रशिक्षण शिविरों में टीम वर्क से चुनौतीपूर्ण टास्क पूरे करने का अनुभव उन्हें जीवनभर मदद करता है। बहुगुणा ने बताया कि ऐसे विद्यार्थी जो रेगुलर माध्यम से पढ़ाई नहीं कर रहे हैं, ओपन यूनिट में रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए वेबसाइट द्धह्लह्लश्च://222.ड्ढह्यद्दद्बठ्ठस्रद्बड्ड.शह्म्द्द/ देख सकते हैं।
सांस्कृतिक कार्यक्रम
केवल स्पोट्र्स कोटे ही नहीं, बल्कि कल्चरल कोटे से भी अंडरग्रेजुएट कोर्सेज में दाखिला मिलता है। ऐसे में अगर आप स्कूल स्तर पर डांस या ड्रामा जैसे कार्यक्रमों में सक्रिय हैं, तो कम नंबर होने के बावजूद भी आपके पास अच्छे कॉलेज का ऑप्शन रहता है। डीयू के किरोड़ीमल कॉलेज की कल्चरल सोसाइटी के कन्वेनर सोम्यजीत भट्टाचार्य का कहना है कि फिल्म, थियेटर और म्युजिक सोसाइटी में हिस्सा लेने से छात्रों केलिए इस क्षेत्र से संबंधित प्रतिष्ठित संस्थान जैसे एनएसडी, एफटीआईआई, सत्यजीत रे फिल्म संस्थान और भारतेंदु नाट्य अकादमी में दाखिला लेना आसान हो जाता है। इसके अलावा नृत्य, नाटक, गायन, वाद-विवाद, पेंटिंग आदि प्रतियोगिताओं में भाग लेने से कैरियर विजन तैयार करने में मदद मिलती है। इससे आपको अंदाजा लगेगा कि आपकी मानसिक बनावट कैसी है और किस क्षेत्र में अच्छा कर सकते हैं।
स्टूडेंट्स यूनियन
देश की राजनीति में भविष्य तलाश रहे हैं, तो स्टूडेंट यूनियन से कैरियर की शुरुआत कर सकते हैं। जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन के पूर्व अध्यक्ष संदीप सिंह का मानना है कि राजनीति में जाने के लिए स्टूडेंट्स यूनियन एक सशक्त प्लेटफॉर्म तैयार करती है। छात्र राजनीति छात्रों में लोकतंत्र और राजनीति की एक बेहतर समझ विकसित करती है। आज देश में ऐसे कई बड़े नेता हैं, जिन्होंने छात्र संघ से ही शुरुआत की और पहचान बनाई।
Sunday, October 31, 2010
Monday, September 6, 2010
परमाणु दायित्व विधेयक-२०१०
हाल में भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में परमाणु दायित्व विधेयक कई संशोधनों के बाद पारित हुआ। पिछले कई समय से सांसद में इस मुद्दे पर भारी हंगामा चल रहा था। जानते हैं इस विधेयक और इससे जुड़े विवादों के बारे में।
क्या है ये विधेयक
दरअसल इसके लागू होने के बाद ऐसा कानून बनेगा, जिससे कि असैन्य परमाणु संयंत्र में दुर्घटना होने की स्थिति में संयंत्र के संचालक (ऑपरेटर) की जिम्मेदारी तय की जा सके। इसी कानून से दुर्घटना प्रभावित लोगों को मुआवजा मिल सकेगा। अमरीका और भारत के बीच अक्टूबर २००८ में असैन्य परमाणु समझौता हुआ था। अमरीका और अन्य परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों से भारत को तकनीक और परमाणु सामग्री की आपूर्ति तब शुरु हो सकेगी, जब वह परमाणु दायित्व विधेयक के जरिए एक कानून बना लेगा।
विवादित धारा १७
धारा १७ (बी) दुर्घटना में आपूर्तिकर्ता के दायित्व से जुड़ी है। यह विवाद परमाणु आपूर्तिकर्ताओं को परिवहन के दौरान या इसके बाद होने वाली दुर्घटनाओं को लिए जवाबदेह ठहराने को लेकर था। विधेयक में आपूर्तिकर्ताओं को जवाबदेह नहीं ठहराया गया था, लेकिन अब संशोधित मसौदे के मुताबिक परमाणु संयंत्र का संचालक आपूर्तिकर्ता से मुआवजा तब मांग सकेगा, जब- (ए) उसके ऐसे अधिकार का उल्लेख सौदे में लिखित रूप से हो, (बी) परमाणु दुर्घटना घटिया या खराब उपकरणों की आपूर्ति की वजह से हुई हो, (सी) परमाणु दुर्घटना किसी व्यक्ति या फर्म की मंशा या चूक के कारण हुई हो।
इस धारा की शब्दावली को लेकर भी विवाद उठा था। धारा १७ के उपबंध (अ) और (ब) के बीच 'औरÓ शब्द के इस्तेमाल को लेकर भी विवाद पैदा हुआ। विरोध के बाद सरकार ने 'औरÓ शब्द को निकाल दिया था, लेकिन '(इन्टेन्ट) इरादेÓ शब्द को शामिल कर दिया। विपक्ष ने इस शब्द का यह कहकर विरोध किया कि परमाणु हादसे के संबंध में इरादा शब्द के जिक्र से आपूर्तिकर्ता को उसकी जिम्मेदार से बच निकलने का रास्ता मिल सकता है, क्योंकि इस तरह की किसी दुर्घटना में इरादा साबित करना मुश्किल होगा। अब संशोधन के तहत यह धारा १७ बी से यह शब्द भी हटा लिया गया है। यहां ऑपरेटर या संचालक न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया होगी। जबकि अमेरिका की जीई और वेस्टिंगहाउस तथा फ्रांस की अरेवा जैसी कंपनियां आपूर्तिकर्ता होंगी।
अन्य विवाद
इस विधेयक में मुआवजे की राशि को लेकर भी विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई थी। पहले इसके लिए विधेयक में संचालक को अधिकतम ५०० करोड़ रुपयों का मुआवजा देने का प्रावधान था, लेकिन विपक्ष की आपत्ति के बाद सरकार ने इसे तीन गुना करके १५०० करोड़ रुपए करने को मंजूरी दे दी। मुआवजे के लिए दावा करने की समय सीमा को लेकर भी सरकार और विपक्ष के बीच काफी मतभेद थे। अब सरकार ने दावा करने की समय सीमा को १० वर्षों से बढ़ाकर २० वर्ष करने का निर्णय लिया है। असैन्य परमाणु क्षेत्र में निजी कंपनियों का प्रवेश भी विवादित विषय रहा। सीएससी भी एक विवादित विषय रहा। सीएससी (कन्वेंशन फॉर सप्लीमेंटरी कंपेनसेशन) एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिस पर हस्ताक्षर करने का मतलब होगा, कि किसी भी दुर्घटना की स्थिति में दावाकर्ता सिर्फ अपने देश में मुआवजे का मुकदमा कर सकेगा। यानी दावाकर्ता को किसी अन्य देश की अदालत में जाने का अधिकार नहीं होगा।
-----------------------
क्या है ये विधेयक
दरअसल इसके लागू होने के बाद ऐसा कानून बनेगा, जिससे कि असैन्य परमाणु संयंत्र में दुर्घटना होने की स्थिति में संयंत्र के संचालक (ऑपरेटर) की जिम्मेदारी तय की जा सके। इसी कानून से दुर्घटना प्रभावित लोगों को मुआवजा मिल सकेगा। अमरीका और भारत के बीच अक्टूबर २००८ में असैन्य परमाणु समझौता हुआ था। अमरीका और अन्य परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों से भारत को तकनीक और परमाणु सामग्री की आपूर्ति तब शुरु हो सकेगी, जब वह परमाणु दायित्व विधेयक के जरिए एक कानून बना लेगा।
विवादित धारा १७
धारा १७ (बी) दुर्घटना में आपूर्तिकर्ता के दायित्व से जुड़ी है। यह विवाद परमाणु आपूर्तिकर्ताओं को परिवहन के दौरान या इसके बाद होने वाली दुर्घटनाओं को लिए जवाबदेह ठहराने को लेकर था। विधेयक में आपूर्तिकर्ताओं को जवाबदेह नहीं ठहराया गया था, लेकिन अब संशोधित मसौदे के मुताबिक परमाणु संयंत्र का संचालक आपूर्तिकर्ता से मुआवजा तब मांग सकेगा, जब- (ए) उसके ऐसे अधिकार का उल्लेख सौदे में लिखित रूप से हो, (बी) परमाणु दुर्घटना घटिया या खराब उपकरणों की आपूर्ति की वजह से हुई हो, (सी) परमाणु दुर्घटना किसी व्यक्ति या फर्म की मंशा या चूक के कारण हुई हो।
इस धारा की शब्दावली को लेकर भी विवाद उठा था। धारा १७ के उपबंध (अ) और (ब) के बीच 'औरÓ शब्द के इस्तेमाल को लेकर भी विवाद पैदा हुआ। विरोध के बाद सरकार ने 'औरÓ शब्द को निकाल दिया था, लेकिन '(इन्टेन्ट) इरादेÓ शब्द को शामिल कर दिया। विपक्ष ने इस शब्द का यह कहकर विरोध किया कि परमाणु हादसे के संबंध में इरादा शब्द के जिक्र से आपूर्तिकर्ता को उसकी जिम्मेदार से बच निकलने का रास्ता मिल सकता है, क्योंकि इस तरह की किसी दुर्घटना में इरादा साबित करना मुश्किल होगा। अब संशोधन के तहत यह धारा १७ बी से यह शब्द भी हटा लिया गया है। यहां ऑपरेटर या संचालक न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया होगी। जबकि अमेरिका की जीई और वेस्टिंगहाउस तथा फ्रांस की अरेवा जैसी कंपनियां आपूर्तिकर्ता होंगी।
अन्य विवाद
इस विधेयक में मुआवजे की राशि को लेकर भी विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई थी। पहले इसके लिए विधेयक में संचालक को अधिकतम ५०० करोड़ रुपयों का मुआवजा देने का प्रावधान था, लेकिन विपक्ष की आपत्ति के बाद सरकार ने इसे तीन गुना करके १५०० करोड़ रुपए करने को मंजूरी दे दी। मुआवजे के लिए दावा करने की समय सीमा को लेकर भी सरकार और विपक्ष के बीच काफी मतभेद थे। अब सरकार ने दावा करने की समय सीमा को १० वर्षों से बढ़ाकर २० वर्ष करने का निर्णय लिया है। असैन्य परमाणु क्षेत्र में निजी कंपनियों का प्रवेश भी विवादित विषय रहा। सीएससी भी एक विवादित विषय रहा। सीएससी (कन्वेंशन फॉर सप्लीमेंटरी कंपेनसेशन) एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिस पर हस्ताक्षर करने का मतलब होगा, कि किसी भी दुर्घटना की स्थिति में दावाकर्ता सिर्फ अपने देश में मुआवजे का मुकदमा कर सकेगा। यानी दावाकर्ता को किसी अन्य देश की अदालत में जाने का अधिकार नहीं होगा।
-----------------------
ब्लैकबेरी और विवाद
ब्लैकबेरी
ब्लैक ब्लैकबेरी एक पर्सनल डिजिटल असिस्टेंट (पीडीए) हैंडसेट के तौर पर काम करता है, जिसमें इंटरनेट, ईमेल, मेसेजिंग, एड्रेस बुक, और कैलेण्डर जैसी तमाम एडवांस सेवाएं हैं। अन्य फोनों से यह सिक्योरिटी के मामले में अलग है। इसके द्वारा भेजे गए ई-मेल या मैसेजेस बीच में पढ़े नहीं जा सकते क्योंकि उन्हें इनक्रिप्ट कर दिया जाता है। कनाडा की एक कंपनी रिम (क्रढ्ढरू- क्रद्गह्यद्गड्डह्म्ष्द्ध ढ्ढठ्ठ रूशह्लद्बशठ्ठ) वर्ष १९९६ से यह बनाती आ रही है। अमेरिकी से शुरुआत कर अब इस स्मार्टफोन की पहुंच १७५ देशों तक हो गई है। मुख्यरूप से इसमें मेसेजिंग से संबंधित काफी फंक्शन्स हैं, इसलिए यह मेसेजिंग फोन ज्यादा है। ब्लैकबेरी उपयोगकर्ता को एक निजी पिन नंबर दिया जाता है। सभी ब्लैकबेरी हैंडसेट ब्लैकबेरी इंटरप्राइज सर्वर (बीईएस) से जुड़े होते हैं। भारत में तकरीबन १० लाख लोग इसकी सेवाएं प्रयोग करते हैं। हाल में डाटा इनक्रिप्शन को लेकर भारत सरकार और रिम के बीच काफी विवाद हुआ।
क्या है डाटा इनक्रिप्शन
डाटा को एनकोड करने की प्रक्रिया को डाटा इनक्रिप्शन कहते हैं। ऐसा डाटा की गोपनीयता बनाए रखने के लिए किया जाता है, ताकि अनधिकृत व्यक्ति डाटा पढ़ न सके। ई-कॉमर्स और ई-गर्वनेंस से जुड़ी गतिविधियों के लिए इस स्तर से अधिक की इनक्रिप्शन की जरूरत होती है। वर्तमान में मोबाइल फोन या इंटरनेट से ऑनलाइन ट्रांजेक्शन का इस्तेमाल अधिक होने के कारण डाटा इनक्रिप्शन का महत्व बढ़ गया है। ऐसे में आजकल मेसिजिंग या ईमेल का अधिकांश डाटा अनरीडेबल (जिसे पढ़ा न सके) फॉर्म में भेजा जाता है, जिसे सॉफ्टवेयर से समझा जाता है जिनमें विशेष प्रकार की 'इनक्रिप्शन-कीÓ होती है। ४० बिट की इनक्रिप्शन कम स्तर की होती है जिसे तोडऩा या कै्रक करना आसान होता है।
कैसे काम करता है
ब्लैकबेरी यूजर्स के मेलबॉक्स में एक प्राइवेट 'इनक्रिप्शन-कीÓ होती है। यह प्राइवेट-की फोन में आए या भेजे जाने वाले डाटा को इनक्रिप्ट कर देती है। इनक्रिप्टेड सूचना सुरक्षित तरीके से स्मार्टफोन में पहुंचती है जहां पहले से स्टोर 'कीÓ से इसे डीक्रिप्डेट कर देती है।
विवाद
ब्लैकबेरी की इनक्रिप्शन उच्च स्तर की है जिसके कारण एंटरप्राइज ईमेल (कंपनियों से संबंधित ईमेल) और मेसेंजर सर्विसेज पर खुफिया एजेंसिया निगरानी नहीं रख पाती। भारत सरकार का कहना है कि इससे आतंकवादी को मदद मिलेगी। इसलिए उसने रिम को चेतावनी दी है कि ई-मेल और मेसेज को कोड भाषा में भेजना बंद किया जाए। साथ ही इनक्रिप्टेड डाटा को डीक्रिप्ट करने की 'मास्टर-कीÓ भी साझा करें। सरकार द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के मुताबिक कोई कंपनी अथॉरिटी (लाइसेंस देने वाली) की अनुमति के बगैर ४० बिट तक की इनक्रिप्शन लेंथ का इस्तेमाल कर सकती है। लेकिन अगर इन्क्रिप्शन की लंबाई ज्यादा है तो इसके लिए कंपनी को अथॉरिटी से लिखित तौर पर अनुमति लेनी होगी। साथ ही अथॉरिटी को 'डिक्रिप्शन-कीÓ भी देनी होगी। रिम की दलील है कि इस फोन का निर्माण ही इस तरह से किया गया है कि कंपनी भी इसके डाटा को इंटरसेप्ट नहीं कर सकती। उनका कहना है यही उनकी सबसे बड़ी विशेषता है। लेकिन सरकार ने इसको ३१ अगस्त का समय दिया है।
अन्य देशों में ब्लैकबेरी
यूएई और साउदी अरब ने ब्लैकबेरी की उन सर्विसेज पर रोक लगाने की चेतावनी दी है जिन्हें इंटरसेप्ट नहीं किया जा सकता। सऊदी अरब में बैन लगने के डर से रिम अपनी मेसेंजर सर्विस की निगरानी के लिए राजी हो गई है। कुवैत और लेबनान में भी रिम को इनक्रिप्टिड सूचनाओं के एस्सेस यानी उनकी निगरानी के लिए कहा है। चीन के दबाव के आगे रिम ने वहां निगरानी के वास्ते अपना अलग सर्वर लगा दिया है। अल्जीरिया और बहरीन में भी इस पर सुरक्षा कारणों से प्रतिबंध लग सकता है।
ब्लैक ब्लैकबेरी एक पर्सनल डिजिटल असिस्टेंट (पीडीए) हैंडसेट के तौर पर काम करता है, जिसमें इंटरनेट, ईमेल, मेसेजिंग, एड्रेस बुक, और कैलेण्डर जैसी तमाम एडवांस सेवाएं हैं। अन्य फोनों से यह सिक्योरिटी के मामले में अलग है। इसके द्वारा भेजे गए ई-मेल या मैसेजेस बीच में पढ़े नहीं जा सकते क्योंकि उन्हें इनक्रिप्ट कर दिया जाता है। कनाडा की एक कंपनी रिम (क्रढ्ढरू- क्रद्गह्यद्गड्डह्म्ष्द्ध ढ्ढठ्ठ रूशह्लद्बशठ्ठ) वर्ष १९९६ से यह बनाती आ रही है। अमेरिकी से शुरुआत कर अब इस स्मार्टफोन की पहुंच १७५ देशों तक हो गई है। मुख्यरूप से इसमें मेसेजिंग से संबंधित काफी फंक्शन्स हैं, इसलिए यह मेसेजिंग फोन ज्यादा है। ब्लैकबेरी उपयोगकर्ता को एक निजी पिन नंबर दिया जाता है। सभी ब्लैकबेरी हैंडसेट ब्लैकबेरी इंटरप्राइज सर्वर (बीईएस) से जुड़े होते हैं। भारत में तकरीबन १० लाख लोग इसकी सेवाएं प्रयोग करते हैं। हाल में डाटा इनक्रिप्शन को लेकर भारत सरकार और रिम के बीच काफी विवाद हुआ।
क्या है डाटा इनक्रिप्शन
डाटा को एनकोड करने की प्रक्रिया को डाटा इनक्रिप्शन कहते हैं। ऐसा डाटा की गोपनीयता बनाए रखने के लिए किया जाता है, ताकि अनधिकृत व्यक्ति डाटा पढ़ न सके। ई-कॉमर्स और ई-गर्वनेंस से जुड़ी गतिविधियों के लिए इस स्तर से अधिक की इनक्रिप्शन की जरूरत होती है। वर्तमान में मोबाइल फोन या इंटरनेट से ऑनलाइन ट्रांजेक्शन का इस्तेमाल अधिक होने के कारण डाटा इनक्रिप्शन का महत्व बढ़ गया है। ऐसे में आजकल मेसिजिंग या ईमेल का अधिकांश डाटा अनरीडेबल (जिसे पढ़ा न सके) फॉर्म में भेजा जाता है, जिसे सॉफ्टवेयर से समझा जाता है जिनमें विशेष प्रकार की 'इनक्रिप्शन-कीÓ होती है। ४० बिट की इनक्रिप्शन कम स्तर की होती है जिसे तोडऩा या कै्रक करना आसान होता है।
कैसे काम करता है
ब्लैकबेरी यूजर्स के मेलबॉक्स में एक प्राइवेट 'इनक्रिप्शन-कीÓ होती है। यह प्राइवेट-की फोन में आए या भेजे जाने वाले डाटा को इनक्रिप्ट कर देती है। इनक्रिप्टेड सूचना सुरक्षित तरीके से स्मार्टफोन में पहुंचती है जहां पहले से स्टोर 'कीÓ से इसे डीक्रिप्डेट कर देती है।
विवाद
ब्लैकबेरी की इनक्रिप्शन उच्च स्तर की है जिसके कारण एंटरप्राइज ईमेल (कंपनियों से संबंधित ईमेल) और मेसेंजर सर्विसेज पर खुफिया एजेंसिया निगरानी नहीं रख पाती। भारत सरकार का कहना है कि इससे आतंकवादी को मदद मिलेगी। इसलिए उसने रिम को चेतावनी दी है कि ई-मेल और मेसेज को कोड भाषा में भेजना बंद किया जाए। साथ ही इनक्रिप्टेड डाटा को डीक्रिप्ट करने की 'मास्टर-कीÓ भी साझा करें। सरकार द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के मुताबिक कोई कंपनी अथॉरिटी (लाइसेंस देने वाली) की अनुमति के बगैर ४० बिट तक की इनक्रिप्शन लेंथ का इस्तेमाल कर सकती है। लेकिन अगर इन्क्रिप्शन की लंबाई ज्यादा है तो इसके लिए कंपनी को अथॉरिटी से लिखित तौर पर अनुमति लेनी होगी। साथ ही अथॉरिटी को 'डिक्रिप्शन-कीÓ भी देनी होगी। रिम की दलील है कि इस फोन का निर्माण ही इस तरह से किया गया है कि कंपनी भी इसके डाटा को इंटरसेप्ट नहीं कर सकती। उनका कहना है यही उनकी सबसे बड़ी विशेषता है। लेकिन सरकार ने इसको ३१ अगस्त का समय दिया है।
अन्य देशों में ब्लैकबेरी
यूएई और साउदी अरब ने ब्लैकबेरी की उन सर्विसेज पर रोक लगाने की चेतावनी दी है जिन्हें इंटरसेप्ट नहीं किया जा सकता। सऊदी अरब में बैन लगने के डर से रिम अपनी मेसेंजर सर्विस की निगरानी के लिए राजी हो गई है। कुवैत और लेबनान में भी रिम को इनक्रिप्टिड सूचनाओं के एस्सेस यानी उनकी निगरानी के लिए कहा है। चीन के दबाव के आगे रिम ने वहां निगरानी के वास्ते अपना अलग सर्वर लगा दिया है। अल्जीरिया और बहरीन में भी इस पर सुरक्षा कारणों से प्रतिबंध लग सकता है।
Saturday, August 14, 2010
पेटेंट, कॉपीराइट और ट्रेडमार्क
आप अकसर पेटेंट, कॉपीराइट और ट्रेडमार्क का नाम सुनते रहते हैं। इन शब्दों के स्पष्ट अर्थ को लेकर बहुत से लोग असमंजस में रहते हैं। दरअसल ये तीनों बौद्धिक संपदा अधिकार (इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट) के तहत आते हैं। यहां जानते हैं इनके बारे में।
पेटेंट
पेटेंट ïïïïïïवह व्यवस्था है जिसके तहत किसी भी नई खोज से बनने वाले उत्पाद पर एकाधिकार दिया जाता है। यह अधिकार खोज करने वाले व्यक्ति को सरकार द्वारा दिया जाता है। इसके बाद एक निश्चित समय तक न तो कोई उस उत्पाद को बना सकता है और न ही बेच सकता है। अगर बनाना चाहे, तो उसे लाइसेंस लेना पड़ेगा और रॉयल्टी देनी होगी। विश्व व्यापार संगठन ने पेटेंट की अवधि बीस साल तय कर रखी है। पेटेंट हासिल करने वाला व्यक्ति अपना यह अधिकार बेच या ट्रांसफर कर सकता है। इसके अलावा प्रोसेस पेटेंट भी होता है, जिसका संबंध नई तकनीक या किसी उत्पाद को बनाने वाली विधि से है। मतलब किसी नई विधि पर भी पेटेंट लिया जा सकता है। लेकिन पेटेंट का ये आदेश जिस देश में जारी किया जाता है, उसकी सीमाओं के भीतर ही उसे लागू माना जाता है। मगर, टीआरआईपीएस, पेंटेंट सहयोग संधि (पीसीटी) और सब्सटेंसिव पेंटेंट लॉ ट्रीटी जैसे कई बहुपक्षीय समझौतों के विस्तार के साथ पेंटेंट व्यवस्था वैश्विक रूप लेती जा रही है।
कॉपीराइट
यह भी बौद्धिक संपदा अधिकार का ही एक रूप है, लेकिन कई मायनों में पेटेंट से अलग है। कॉपीराइट किसी मौलिक लेखन, संगीत, कलाकृति, डिजाइन, फिल्म या तस्वीरों के लिए होता है। भारतवर्ष में कॉपीराइट को लेकर कॉपीराइट एक्ट - १९५७ है। यह अधिकार किसी को हस्तांतरित किया जा सकता है। जैसे किसी फिल्म के रीमेक का अधिकार प्राप्त करना होता है या किसी और की धुन या गीत का इस्तेमाल करना होता है, तो उसके लिए भी अनुमति की जरूरत होती है। कॉपीराइट एक निश्चित समय के लिए मान्य होता है जिसके बाद उस कृति को सार्वजनिक मान लिया जाता है। किसी व्यक्ति की कृति को 'नैतिक अधिकारÓ के तौर पर कुछ कानूनी मान्यता भी हासिल है। मसलन किसी व्यक्ति की कृति का इस्तेमाल करने पर उसे इसके लिए श्रेय दिया जाना चाहिए। हाल ही में फिल्म 'थ्री इडियटÓ को चेतन भगत की किताब पर आधारित माना जा रहा था और जिसके लिए फिल्म में कोई श्रेय नहीं दिया गया था। लिहाजा चेतन भगत और फिल्म निर्माता के बीच कुछ अनबन देखने को मिली थी।
ट्रेडमार्क
ट्रेडमार्क भी एक तरीके से बौद्धिक संपदा अधिकार होता है जिसका इस्तेमाल कोई कंपनी या उत्पादक अपने उत्पाद को दूसरों से अलग बताने के लिए करता है। किसी वस्तु पर मौजूद ट्रेडमार्क से जाहिर होता है कि यह किसी विशेष कंपनी की ओर से बनाया जा रहा है। ट्रेडमार्क का प्रयोग कोई व्यक्ति, व्यावसायिक संगठन या कानूनी इकाई अपने उत्पाद या सेवा के लिए करती है। आमतौर पर किसी नाम, वाक्य, लोगो, विशेष चिह्नï, डिजाइन या चित्र को ट्रेडमार्क बनाया जाता है। कंपनी विशेष के सभी उत्पादों पर उसका ट्रेडमार्क लगा होता है। कानूनी संस्था आईएसआई मार्क, आईएसओ मार्क, खाद्य उत्पादों में शाकाहारी और मांसाहारी उत्पादों की पहचान के लिए हरे और लाल निशान (ट्रेडमार्क) का इस्तेमाल करती है। ट्रेडमार्क पंजीकृत और गैर-पंजीकृत दोनों तरह के होते हैं।
पेटेंट
पेटेंट ïïïïïïवह व्यवस्था है जिसके तहत किसी भी नई खोज से बनने वाले उत्पाद पर एकाधिकार दिया जाता है। यह अधिकार खोज करने वाले व्यक्ति को सरकार द्वारा दिया जाता है। इसके बाद एक निश्चित समय तक न तो कोई उस उत्पाद को बना सकता है और न ही बेच सकता है। अगर बनाना चाहे, तो उसे लाइसेंस लेना पड़ेगा और रॉयल्टी देनी होगी। विश्व व्यापार संगठन ने पेटेंट की अवधि बीस साल तय कर रखी है। पेटेंट हासिल करने वाला व्यक्ति अपना यह अधिकार बेच या ट्रांसफर कर सकता है। इसके अलावा प्रोसेस पेटेंट भी होता है, जिसका संबंध नई तकनीक या किसी उत्पाद को बनाने वाली विधि से है। मतलब किसी नई विधि पर भी पेटेंट लिया जा सकता है। लेकिन पेटेंट का ये आदेश जिस देश में जारी किया जाता है, उसकी सीमाओं के भीतर ही उसे लागू माना जाता है। मगर, टीआरआईपीएस, पेंटेंट सहयोग संधि (पीसीटी) और सब्सटेंसिव पेंटेंट लॉ ट्रीटी जैसे कई बहुपक्षीय समझौतों के विस्तार के साथ पेंटेंट व्यवस्था वैश्विक रूप लेती जा रही है।
कॉपीराइट
यह भी बौद्धिक संपदा अधिकार का ही एक रूप है, लेकिन कई मायनों में पेटेंट से अलग है। कॉपीराइट किसी मौलिक लेखन, संगीत, कलाकृति, डिजाइन, फिल्म या तस्वीरों के लिए होता है। भारतवर्ष में कॉपीराइट को लेकर कॉपीराइट एक्ट - १९५७ है। यह अधिकार किसी को हस्तांतरित किया जा सकता है। जैसे किसी फिल्म के रीमेक का अधिकार प्राप्त करना होता है या किसी और की धुन या गीत का इस्तेमाल करना होता है, तो उसके लिए भी अनुमति की जरूरत होती है। कॉपीराइट एक निश्चित समय के लिए मान्य होता है जिसके बाद उस कृति को सार्वजनिक मान लिया जाता है। किसी व्यक्ति की कृति को 'नैतिक अधिकारÓ के तौर पर कुछ कानूनी मान्यता भी हासिल है। मसलन किसी व्यक्ति की कृति का इस्तेमाल करने पर उसे इसके लिए श्रेय दिया जाना चाहिए। हाल ही में फिल्म 'थ्री इडियटÓ को चेतन भगत की किताब पर आधारित माना जा रहा था और जिसके लिए फिल्म में कोई श्रेय नहीं दिया गया था। लिहाजा चेतन भगत और फिल्म निर्माता के बीच कुछ अनबन देखने को मिली थी।
ट्रेडमार्क
ट्रेडमार्क भी एक तरीके से बौद्धिक संपदा अधिकार होता है जिसका इस्तेमाल कोई कंपनी या उत्पादक अपने उत्पाद को दूसरों से अलग बताने के लिए करता है। किसी वस्तु पर मौजूद ट्रेडमार्क से जाहिर होता है कि यह किसी विशेष कंपनी की ओर से बनाया जा रहा है। ट्रेडमार्क का प्रयोग कोई व्यक्ति, व्यावसायिक संगठन या कानूनी इकाई अपने उत्पाद या सेवा के लिए करती है। आमतौर पर किसी नाम, वाक्य, लोगो, विशेष चिह्नï, डिजाइन या चित्र को ट्रेडमार्क बनाया जाता है। कंपनी विशेष के सभी उत्पादों पर उसका ट्रेडमार्क लगा होता है। कानूनी संस्था आईएसआई मार्क, आईएसओ मार्क, खाद्य उत्पादों में शाकाहारी और मांसाहारी उत्पादों की पहचान के लिए हरे और लाल निशान (ट्रेडमार्क) का इस्तेमाल करती है। ट्रेडमार्क पंजीकृत और गैर-पंजीकृत दोनों तरह के होते हैं।
वीजा और नियम
जब दूसरे देश में जाने की बात होती है तो सबसे पहले वीजा का ख्याल आता है। आइए, वीजा के विभिन्न पहलुओं पर डालते हैं एक नजर :
वीजा वह दस्तावेज होता है जो किसी व्यक्ति को अन्य देश में प्रवेश करने की अनुमति देता है। दरअसल दूसरे देशों में जाने केलिए इस तरह के प्रतिबंध की शुरुआत मुख्य तौर पर प्रथम विश्व युद्ध के बाद सामने आई। किसी देश के वीजा संबंधी नियम अन्य देशों से संबंधों पर निर्भर करते हैं। इनमें सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और अप्रवासी लोगों की आर्थिक स्थिति जैसे तथ्य अहम भूमिका निभाते हैं।
विभिन्न प्रकार के वीजा
हर देश मकसद के हिसाब से अलग-अलग प्रकार का वीजा जारी करता है। उदाहरण के लिए, भारत में ११ तरह के वीजा जारी किए जाते हैं, जैसे टूरिस्ट, बिजनेस, जर्नलिस्ट, ट्रांसिट, एंट्री आदि। एंट्री वीजा भारतीय मूल के व्यक्ति को भारत आने के समय दिया जाता है। भारत फिनलैंड, जापान, लग्जमबर्ग, न्यूजीलैंड और सिंगापुर के नागरिकों को टूरिस्ट वीजा जारी करता है।
कॉमन वीजा
आमतौर पर वीजा से केवल उसी देश में जाने की इजाजत मिलती है, जो देश उसे जारी करता है। लेकिन कॉमन वीजा के जरिए एक से अधिक देशों में जाने की अनुमति मिलती है। दरअसल कुछ अंतरराष्ट्रीय समझौते होते हैं, जो किसी विदेशी को कॉमन वीजा पर कुछ देशों में जाने की अनुमति देते हैं। मसलन, शेन्जेन वीजा (स्ष्द्धद्गठ्ठद्दद्गठ्ठ) से बिना किसी रुकावट के २५ सदस्य देशों की सैर की जा सकती है। सेंट्रल अमेरिकन सिंगल वीजा से ग्वाटेमाला, होंडुरास, अल-सल्वाडोर और निकारागुआ की सैर की जा सकती है। केन्या, तंजानिया और युगांडा में जाने के लिए भी ईस्ट अफ्रीकन टूरिस्ट वीजा काफी है। २००७ में हुए क्रिकेट वल्र्ड कप के दौरान १० कैरिबियाई देशों ने इसी तरह का कॉमन वीजा जारी किया था।
कनाडा, जापान, ब्राजील और कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स जैसे देशों में वीजा संबंधी नियम रेसिप्रोकल (पारस्परिक) हैं, यानी अगर कोई देश दूसरे देशों के नागरिकों को बिना वीजा प्रवेश देता है, तो दूसरे देश भी वहां के नागरिकों को बगैर वीजा अपने यहां आने देंगे।
यहां वीजा की जरूरत नहीं
विश्व में कुछ ऐसे देश भी हैं जहां नागरिकों को कुछ चुनिंदा देशों में जाने के लिए वीजा बनवाने की जरूरत नहीं। जैसे यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों के नागरिक एक-दूसरे केदेशों में बेरोक-टोक प्रवेश कर सकते हैं। अमेरिका भी ३६ देशों को इस तरह की छूट देता है। गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल (छह अरब राज्यों का समूह) में शामिल सदस्य देशों के नागरिक भी एक-दूसरे के यहां न सिर्फ बिना वीजा जा सकते हैं, बल्कि आवश्यकतानुसार ठहर भी सकते हैं। ईस्ट अफ्रीकन समुदाय के सदस्य देशों के नागरिक एक-दूसरे के यहां बिना वीजा जा सकते हैं। भारत भी भूटान और नेपाल के लोगों को बगैर वीजा आने की अनुमति देता है। लेकिन अपने देश की बजाय किसी अन्य देश से भारत में प्रवेश करने की स्थिति में इन लोगों को पासपोर्ट की आïवश्यकता होगी।
बाहर जाने के लिए भी वीजा
दुनिया में कुछ ऐसे देश भी हैं जहां से बाहर जाने के लिए भी वीजा की जरूरत होती है। सउदी अरब और कतर में काम कर रहे विदेशी मजदूरों को देश छोडऩे से पहले एक्जिट वीजा दिखाना होता है। यह एक्जिट वीजा एक तरह से मालिक द्वारा मजूदर को दी गई क्लियरेंस होती है। यदि रूस में कोई विदेशी निश्चित अवधि से ज्यादा समय तक वहां रहता है, तो उसे भी इस तरह के वीजा की जरूरत पड़ती है। इस वीजा में उसे तय की गई अवधि से ज्यादा समय तक वहां रहने का कारण बताना होता है। इसी तरह उजबेकिस्तान और क्यूबा जैसे देशों में विदेशियों को भी देश छोड़ते वक्त एक्जिट वीजा बनवाना पड़ता है।
रिमोट सेंसिंग उपग्रह
हाल ही में इसरो ने कार्टोसेट नामक रिमोट सेंसिंग उपग्रह को सफलता पूर्वक प्रक्षेपित किया। यहां जानते हैं रिमोट सेंसिंग और ये सेवाएं देने वाले उपग्रहों के बारे में।
रिमोट सेंसिंग और रिमोट सेंसिंग उपग्रह
रिमोट सेंसिंग यानी दूरसंवेदी वह तकनीक है, जिसके जरिये किसी वायरलैस उपकरण (रियल टाइम सेंसिंग डिवाइस) से कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई जाती हैं। रिमोट सेंसिंग उपग्रह भी ऐसे ही उपकरण की तरह होते हैं। इन उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर धरती के प्राकृतिक संसाधनों की जानकारी व आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं।
भारतीय रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट्स
भारत में इसरो (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन) द्वारा इंडियन रिमोट सेंसिंग सेटलाइट्स सिस्टम (भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह प्रणाली) का विकास किया गया है, जिसका उद्देश्य पृथ्वी की निरीक्षण करना है। ये उपग्रह अंतरिक्ष में जाकर भारत को रिमोट सेंसिंग सेवाएं देते हैं।
भारतीय रिमोट सेंसिंग सिस्टम
भास्कर-१ (१९७९) और भास्कर-२ (१९८१) में सफल उड़ान के बाद भारत ने कृषि, जल संसाधन, वन, मतस्य पालन और तट आदि संबंधी क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था के तीव्र विकास के लिए इंडियन रिमोट सेंसिंग (आईआरएस) सेटलाइट प्रोग्राम शुरू किया। इस मकसद से भारत सरकार ने नेशनल नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम बनाया। भारत सरकार का अंतरिक्ष विभाग इसे रिमोट सेंसिंग से जुड़ी सेवाएं मुहैया कराता है। असैनिक उद्देश्यों के लिए काम कर रहे विश्व के विभिन्न रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट सिस्टम्स में आईआरएस सबसे बड़ा है।
क्या करते हैं ये उपग्रह
इसका मुख्य उद्देश्य मिट्टी, जल, समुद्र, वन आदि प्राकृतिक संसाधनों का सर्वेक्षण व निगरानी करना है। मछली पालन, बाढ़ या सूखे जैसी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं की चेतावनी, फसलों के क्षेत्रफल व उत्पादन का आंकलन, खनिज संसाधनों का सर्वेक्षण आदि किसी स्थान पर निरंतर हो रहे बदलावों संबंधी सूचनाएं देते रहना इन्हीं का कार्य है। इन उपग्रहों में शक्तिशाली इलेक्ट्रॉनिक कैमरे लगे होते हैं। इन कैमरों से धरातल स्थित वस्तुओं का चित्र लिया जाता है फिर इन चित्रों का विश्लेष्ण कर आवश्यक जानकारी प्राप्त की जाती है।
कोर्टोसेट-२ बी
चार चरण वाले और ४४.४ मीटर लंबे प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी- १५ ने हाल ही में रिमोट सेंसिग उपग्रह कार्टोसेट-२ बी को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया। इसके साथ अन्य चार उपग्रहों को भी प्रक्षेपित किया गया। कोर्टोसेट-२ बी भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह शृंखला का १७ वां उपग्रह है। इससे पहले कार्टोसेट-२ और २ ए नाम के भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह भी अंतरिक्ष में हैं जो इसी प्रकार की सेवाएं दे रहे हैं। कार्टोसेट-२ बी में पैन्क्रोमेटिक कैमरा लगा है जिसमें ९.६ किलोमीटर की पट्टी को इमैजिंग करने की क्षमता है। इस कैमरे द्वारा भेजी गई तस्वीरें गांवों का अनुमान लगाने, नक्शा बनाने, शहरी आधारभूत ढांचे और यातायात प्रणाली की योजना बनाने में बहुत मदद मिलेगी।
रिमोट सेंसिंग और रिमोट सेंसिंग उपग्रह
रिमोट सेंसिंग यानी दूरसंवेदी वह तकनीक है, जिसके जरिये किसी वायरलैस उपकरण (रियल टाइम सेंसिंग डिवाइस) से कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई जाती हैं। रिमोट सेंसिंग उपग्रह भी ऐसे ही उपकरण की तरह होते हैं। इन उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर धरती के प्राकृतिक संसाधनों की जानकारी व आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं।
भारतीय रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट्स
भारत में इसरो (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन) द्वारा इंडियन रिमोट सेंसिंग सेटलाइट्स सिस्टम (भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह प्रणाली) का विकास किया गया है, जिसका उद्देश्य पृथ्वी की निरीक्षण करना है। ये उपग्रह अंतरिक्ष में जाकर भारत को रिमोट सेंसिंग सेवाएं देते हैं।
भारतीय रिमोट सेंसिंग सिस्टम
भास्कर-१ (१९७९) और भास्कर-२ (१९८१) में सफल उड़ान के बाद भारत ने कृषि, जल संसाधन, वन, मतस्य पालन और तट आदि संबंधी क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था के तीव्र विकास के लिए इंडियन रिमोट सेंसिंग (आईआरएस) सेटलाइट प्रोग्राम शुरू किया। इस मकसद से भारत सरकार ने नेशनल नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम बनाया। भारत सरकार का अंतरिक्ष विभाग इसे रिमोट सेंसिंग से जुड़ी सेवाएं मुहैया कराता है। असैनिक उद्देश्यों के लिए काम कर रहे विश्व के विभिन्न रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट सिस्टम्स में आईआरएस सबसे बड़ा है।
क्या करते हैं ये उपग्रह
इसका मुख्य उद्देश्य मिट्टी, जल, समुद्र, वन आदि प्राकृतिक संसाधनों का सर्वेक्षण व निगरानी करना है। मछली पालन, बाढ़ या सूखे जैसी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं की चेतावनी, फसलों के क्षेत्रफल व उत्पादन का आंकलन, खनिज संसाधनों का सर्वेक्षण आदि किसी स्थान पर निरंतर हो रहे बदलावों संबंधी सूचनाएं देते रहना इन्हीं का कार्य है। इन उपग्रहों में शक्तिशाली इलेक्ट्रॉनिक कैमरे लगे होते हैं। इन कैमरों से धरातल स्थित वस्तुओं का चित्र लिया जाता है फिर इन चित्रों का विश्लेष्ण कर आवश्यक जानकारी प्राप्त की जाती है।
कोर्टोसेट-२ बी
चार चरण वाले और ४४.४ मीटर लंबे प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी- १५ ने हाल ही में रिमोट सेंसिग उपग्रह कार्टोसेट-२ बी को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया। इसके साथ अन्य चार उपग्रहों को भी प्रक्षेपित किया गया। कोर्टोसेट-२ बी भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह शृंखला का १७ वां उपग्रह है। इससे पहले कार्टोसेट-२ और २ ए नाम के भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह भी अंतरिक्ष में हैं जो इसी प्रकार की सेवाएं दे रहे हैं। कार्टोसेट-२ बी में पैन्क्रोमेटिक कैमरा लगा है जिसमें ९.६ किलोमीटर की पट्टी को इमैजिंग करने की क्षमता है। इस कैमरे द्वारा भेजी गई तस्वीरें गांवों का अनुमान लगाने, नक्शा बनाने, शहरी आधारभूत ढांचे और यातायात प्रणाली की योजना बनाने में बहुत मदद मिलेगी।
Monday, May 17, 2010
भारत में हुए बड़े घोटाले | अन्ना-रामदेव एक साथ
हाल ही में आईपीएल टीमों की बोली में घपलेबाजी और प्रसारण अधिकारों में धांधली का मामला काफी चर्चा में रहा। आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी को पद से निलंबित कर दिया गया। दरअसल आजादी से अब तक देश में काफी बड़े घोटालों का इतिहास रहा है। जानते हैं इस इतिहास को संक्षेप में..
जीप पर्चेज (१९४८)
आजादी के बाद भारत सरकार ने एक लंदन की कंपनी से २००० जीपों को सौदा किया। सौदा ८० लाख रुपये का था। लेकिन केवल १५५ जीप ही मिल पाई। घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी.के.कृष्ण मेनन का हाथ होने की बात सामने आई। लेकिन १९५५ में केस बंद कर दिया गया। जल्द ही मेनन नेहरु केबिनेट में शामिल हो गए।
साइकिल इंपोर्ट (१९५१): तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सेकरेटरी एस.ए. वेंकटरमन ने एक कंपनी को साइकिल आयात कोटा दिए जाने के बदले में रिश्वत ली। इसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा।
मुंध्रा मैस (१९५८) : हरिदास मुंध्रा द्वारा स्थापित छह कंपनियों में लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के १.२ करोड़ रुपये से संबंधित मामला उजागर हुआ। इसमें तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी, वित्त सचिव एच.एम.पटेल, एलआईसी चेयरमैन एल एस वैद्ययानाथन का नाम आया। कृष्णामचारी को इस्तीफा देना पड़ा और मुंध्रा को जेल जाना पड़ा।
तेजा लोन : १९६० में एक बिजनेसमैन धर्म तेजा ने एक शिपिंग कंपनी शुरू करने केलिए सरकार से २२ करोड़ रुपये का लोन लिया। लेकिन बाद में धनराशि को देश से बाहर भेज दिया। उन्हें यूरोप में गिरफ्तार किया गया और छह साल की कैद हुई।
पटनायक मामला : १९६५ में उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक को इस्तीफा देने केलिए मजबूर किया गया। उन पर अपनी निजी स्वामित्व कंपनी 'कलिंग ट्यूब्सÓ को एक सरकारी कांट्रेक्ट दिलाने केलिए मदद करने का आरोप था।
मारुति घोटाला : मारुति कंपनी बनने से पहले यहां एक घोटाला हुआ जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम आया। मामले में पेसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी।
कुओ(्यह्वश) ऑयल डील : १९७६ में तेल के गिरते दामों के मददेनजर इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने हांग कांग की एक फर्जी कंपनी से ऑयल डील की। इसमें भारत सरकार को १३ करोड़ का चूना लगा। माना गया इस घपले में इंदिरा और संजय गांधी का भी हाथ है।
अंतुले ट्रस्ट : १९८१ में महाराष्ट्र में सीमेंट घोटाला हुआ। तत्कालीन महाराष्ट्र मुख्यमंत्री एआर अंतुले पर आरोप लगा कि वह लोगों के कल्याण के लिए प्रयोग किए जाने वाला सीमेंट, प्राइवेट बिल्डर्स को दे रहे हैं।
एचडीडब्लू कमिशन्स (१९८७) : जर्मनी की पनडुब्बी निर्मित करने वाले कंपनी एचडीडब्लू को काली सूची में डाल दिया गया। मामला था कि उसने २० करोड़ रुपये बैतोर कमिशन दिए हैं। २००५ में केस बंद कर दिया गया। फैसला एचडीडब्लू के पक्ष में रहा।
बोफोर्स घोटाला : १९८७ में एक स्वीडन की कंपनी बोफोर्स एबी से रिश्वत लेने के मामले में राजीव गांधी समेत कई बेड़ नेता फंसे। मामला था कि भारतीय १५५ मिमी. के फील्ड हॉवीत्जर के बोली में नेताओं ने करीब ६४ करोड़ रुपये का घपला किया है।
सिक्योरिटी स्कैम : १९९२ में हर्षद मेहता ने धोखाधाड़ी से बैंको का पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश कर दिया, जिससे स्टॉक मार्केट को करीब ५००० करोड़ रुपये का घाटा हुआ।
इंडियन बैंक : १९९२ में बैंक से छोटे कॉरपोरेट और एक्सपोटर्स ने बैंक से करीब १३००० करोड़ रुपये उधार लिए। ये धनराशि उन्होंने कभी नहीं लौटाई। उस वक्त बैंक के चेयरमैन एम. गोपालाकृष्णन थे।
चारा घोटाला : १९९६ में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और अन्य नेताओं ने राज्य के पशु पालन विभाग को लेकर धोखाबाजी से लिए गए ९५० करोड़ रुपये कथित रूप से निगल लिए।
तहलका : इस ऑनलाइन न्यूज पॉर्टल ने स्टिंग ऑपरेशन के जारिए ऑर्मी ऑफिसर और राजनेताओं को रिश्वत लेते हुए पकड़ा। यह बात सामने आई कि सरकार द्वारा की गई १५ डिफेंस डील में काफी घपलेबाजी हुई है और इजराइल से की जाने वाली बारक मिसाइल डीलभी इसमें से एक है।
स्टॉक मार्केट : स्टॉक ब्रोकर केतन पारीख ने स्टॉक मार्केट में १,१५,००० करोड़ रुपये का घोटाला किया। दिसंबर, २००२ में इन्हें गिरफ्तार किया गया।
स्टांप पेपर स्कैम : यह करोड़ो रुपये के फर्जी स्टांप पेपर का घोटाला था। इस रैकट को चलाने वाला मास्टरमाइंड अब्दुल करीम तेलगी था।
सत्यम घोटाला
२००८ में देश की चौथी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी सत्यम कंप्यूटर्स के संस्थापक अध्यक्ष रामलिंगा राजू द्वारा ८००० करोड़ रूपये का घोटाले का मामला सामने आया। राजू ने माना कि पिछले सात वर्षों से उसने कंपनी के खातों में हेरा फेरी की।
मनी लांडरिंग : २००९ में मधु कोड़ा को चार हजार करोड़ रुपये की मनी लांडरिंग का दोषी पाया गया। मधु कोड़ा की इस संपत्ति में हॉटल्स, तीन कंपनियां, कलकत्ता में प्रॉपर्टी, थाइलैंड में एक हॉटल और लाइबेरिया ने कोयले की खान शामिल थी।
जीप पर्चेज (१९४८)
आजादी के बाद भारत सरकार ने एक लंदन की कंपनी से २००० जीपों को सौदा किया। सौदा ८० लाख रुपये का था। लेकिन केवल १५५ जीप ही मिल पाई। घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी.के.कृष्ण मेनन का हाथ होने की बात सामने आई। लेकिन १९५५ में केस बंद कर दिया गया। जल्द ही मेनन नेहरु केबिनेट में शामिल हो गए।
साइकिल इंपोर्ट (१९५१): तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सेकरेटरी एस.ए. वेंकटरमन ने एक कंपनी को साइकिल आयात कोटा दिए जाने के बदले में रिश्वत ली। इसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा।
मुंध्रा मैस (१९५८) : हरिदास मुंध्रा द्वारा स्थापित छह कंपनियों में लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के १.२ करोड़ रुपये से संबंधित मामला उजागर हुआ। इसमें तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी, वित्त सचिव एच.एम.पटेल, एलआईसी चेयरमैन एल एस वैद्ययानाथन का नाम आया। कृष्णामचारी को इस्तीफा देना पड़ा और मुंध्रा को जेल जाना पड़ा।
तेजा लोन : १९६० में एक बिजनेसमैन धर्म तेजा ने एक शिपिंग कंपनी शुरू करने केलिए सरकार से २२ करोड़ रुपये का लोन लिया। लेकिन बाद में धनराशि को देश से बाहर भेज दिया। उन्हें यूरोप में गिरफ्तार किया गया और छह साल की कैद हुई।
पटनायक मामला : १९६५ में उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक को इस्तीफा देने केलिए मजबूर किया गया। उन पर अपनी निजी स्वामित्व कंपनी 'कलिंग ट्यूब्सÓ को एक सरकारी कांट्रेक्ट दिलाने केलिए मदद करने का आरोप था।
मारुति घोटाला : मारुति कंपनी बनने से पहले यहां एक घोटाला हुआ जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम आया। मामले में पेसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी।
कुओ(्यह्वश) ऑयल डील : १९७६ में तेल के गिरते दामों के मददेनजर इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने हांग कांग की एक फर्जी कंपनी से ऑयल डील की। इसमें भारत सरकार को १३ करोड़ का चूना लगा। माना गया इस घपले में इंदिरा और संजय गांधी का भी हाथ है।
अंतुले ट्रस्ट : १९८१ में महाराष्ट्र में सीमेंट घोटाला हुआ। तत्कालीन महाराष्ट्र मुख्यमंत्री एआर अंतुले पर आरोप लगा कि वह लोगों के कल्याण के लिए प्रयोग किए जाने वाला सीमेंट, प्राइवेट बिल्डर्स को दे रहे हैं।
एचडीडब्लू कमिशन्स (१९८७) : जर्मनी की पनडुब्बी निर्मित करने वाले कंपनी एचडीडब्लू को काली सूची में डाल दिया गया। मामला था कि उसने २० करोड़ रुपये बैतोर कमिशन दिए हैं। २००५ में केस बंद कर दिया गया। फैसला एचडीडब्लू के पक्ष में रहा।
बोफोर्स घोटाला : १९८७ में एक स्वीडन की कंपनी बोफोर्स एबी से रिश्वत लेने के मामले में राजीव गांधी समेत कई बेड़ नेता फंसे। मामला था कि भारतीय १५५ मिमी. के फील्ड हॉवीत्जर के बोली में नेताओं ने करीब ६४ करोड़ रुपये का घपला किया है।
सिक्योरिटी स्कैम : १९९२ में हर्षद मेहता ने धोखाधाड़ी से बैंको का पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश कर दिया, जिससे स्टॉक मार्केट को करीब ५००० करोड़ रुपये का घाटा हुआ।
इंडियन बैंक : १९९२ में बैंक से छोटे कॉरपोरेट और एक्सपोटर्स ने बैंक से करीब १३००० करोड़ रुपये उधार लिए। ये धनराशि उन्होंने कभी नहीं लौटाई। उस वक्त बैंक के चेयरमैन एम. गोपालाकृष्णन थे।
चारा घोटाला : १९९६ में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और अन्य नेताओं ने राज्य के पशु पालन विभाग को लेकर धोखाबाजी से लिए गए ९५० करोड़ रुपये कथित रूप से निगल लिए।
तहलका : इस ऑनलाइन न्यूज पॉर्टल ने स्टिंग ऑपरेशन के जारिए ऑर्मी ऑफिसर और राजनेताओं को रिश्वत लेते हुए पकड़ा। यह बात सामने आई कि सरकार द्वारा की गई १५ डिफेंस डील में काफी घपलेबाजी हुई है और इजराइल से की जाने वाली बारक मिसाइल डीलभी इसमें से एक है।
स्टॉक मार्केट : स्टॉक ब्रोकर केतन पारीख ने स्टॉक मार्केट में १,१५,००० करोड़ रुपये का घोटाला किया। दिसंबर, २००२ में इन्हें गिरफ्तार किया गया।
स्टांप पेपर स्कैम : यह करोड़ो रुपये के फर्जी स्टांप पेपर का घोटाला था। इस रैकट को चलाने वाला मास्टरमाइंड अब्दुल करीम तेलगी था।
सत्यम घोटाला
२००८ में देश की चौथी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी सत्यम कंप्यूटर्स के संस्थापक अध्यक्ष रामलिंगा राजू द्वारा ८००० करोड़ रूपये का घोटाले का मामला सामने आया। राजू ने माना कि पिछले सात वर्षों से उसने कंपनी के खातों में हेरा फेरी की।
मनी लांडरिंग : २००९ में मधु कोड़ा को चार हजार करोड़ रुपये की मनी लांडरिंग का दोषी पाया गया। मधु कोड़ा की इस संपत्ति में हॉटल्स, तीन कंपनियां, कलकत्ता में प्रॉपर्टी, थाइलैंड में एक हॉटल और लाइबेरिया ने कोयले की खान शामिल थी।
Saturday, May 8, 2010
जब बेफकूफी लालचीपन पर भारी पड़ जाए
कभी कभी बेेफकूफी लालचीपन पर भारी पड़ जाती है। शायद इसीलिए कि बेफकूफी में थोड़ी इमानदारी छिपी होती है। करीब तीन साल पहले की बात है। गर्मियों की छुटिटयों में मैं जोगिंग करने पार्क जाया करता था। पार्क मेरे घर से ढाई किलोमीटर दूर है, तो स्कूटर पर जाया करता था। एक दिन जब पार्क से बाहर निकला तो देखा मेरा स्कूटर गायब है। आस पास की जगह खंगाल ली लेकिन नहीं मिला। स्कूटर पार्क करते वक्त मैं अपना पर्स डिक्की में रख दिया करता था क्योंकि पर्स जेब में रखकर भागने में काई दिक्कत आती थी। पर्स में ऑरिजनल लाइसेंस, एटीएम कार्ड, कॉलेज और लाइब्रेरी कार्ड थे। स्कूटर तो गया सो गया, साथ में जरूरी चीजे भी गईं। दिल बैचेन और दुखी हो उठा था, क्योंकि पास के थाने में गया एफआई लिखवाने।
मुझे पता था ये लोग एफआईआर लिखने में आनाकानी करेंगे इसलिए मैंने जुगाड़ लगवाकर एफआईआर दर्ज करवा ही दी। जुगाड़ तगड़ा था इसीलिए आस पास की पीसीआर और थानों में खबर कर दी गई। ठीक एक घंटे बाद मेरे मोबाइल पर फोन आया और एक शख्स बोला कि हम प्रशांत विहार थाने से बोल रहे, हमने आपका स्कूटर चोरी करने वाले को पकड़ लिया है। इसे हमने एक एटीएम के अंदर पकड़ा है। वो बोले आप अपना पिन न. बताइए इससे पुष्टि हो जाएगी कि ये एटीएम कार्ड आपका ही है और ये लोग धोखाधड़ी से एटीएम से पैसे निकाल रहे हैं। मैं असमंजस में पड़ गया और आनन-फानन में वो गुप्त न. बता दिया। बताने की एक वजह यह भी थी कि मैं अकसर अपने एटीएम ज्यादा सीरियस नहीं रहता था क्योंकि उसमें कभी ३०० रुपये से ज्यादा पैसे नहीं रहे थे। लेकिन मैं जानता हूं मुझे बताना नहीं चाहिए था लेकिन वो कहावत है न 'विनाश काले विपरीत बुद्घिÓ। न. सुनते ही उन्होंने बोला आप उसी पार्क में पहुंचिए हम आपका स्कूटर लेकर आते हैं। लेकिन दो घंटे तक कुछ न हुआ। मैं समझ गया मुझे ठगा गया है।
तभी दिमाग में एक तरकीब आई और मेरी बेवकूफी से चोरों की शामत आ गई। बैंक से पता लगवाया कि लास्ट ट्रांजेक्शन किस एटीएम से हुई है और कितनी हुई है। पता लगा कि पैसे रोहिणी के किसी बैंक से निकाले गए हैं। रोहिणी गया और पुलिस की मदद से उस एटीएम में लगे कैमरे की फुटेज निकलवाई। मैं उन लोगों को पहचान गया। वो पार्क के नजदीक झुग्गियों में रहते थे। चोर पकड़े गए। और मुझे पैसों को छोड़कर खोया हुआ सब वापिस मिल गया।
मुझे पता था ये लोग एफआईआर लिखने में आनाकानी करेंगे इसलिए मैंने जुगाड़ लगवाकर एफआईआर दर्ज करवा ही दी। जुगाड़ तगड़ा था इसीलिए आस पास की पीसीआर और थानों में खबर कर दी गई। ठीक एक घंटे बाद मेरे मोबाइल पर फोन आया और एक शख्स बोला कि हम प्रशांत विहार थाने से बोल रहे, हमने आपका स्कूटर चोरी करने वाले को पकड़ लिया है। इसे हमने एक एटीएम के अंदर पकड़ा है। वो बोले आप अपना पिन न. बताइए इससे पुष्टि हो जाएगी कि ये एटीएम कार्ड आपका ही है और ये लोग धोखाधड़ी से एटीएम से पैसे निकाल रहे हैं। मैं असमंजस में पड़ गया और आनन-फानन में वो गुप्त न. बता दिया। बताने की एक वजह यह भी थी कि मैं अकसर अपने एटीएम ज्यादा सीरियस नहीं रहता था क्योंकि उसमें कभी ३०० रुपये से ज्यादा पैसे नहीं रहे थे। लेकिन मैं जानता हूं मुझे बताना नहीं चाहिए था लेकिन वो कहावत है न 'विनाश काले विपरीत बुद्घिÓ। न. सुनते ही उन्होंने बोला आप उसी पार्क में पहुंचिए हम आपका स्कूटर लेकर आते हैं। लेकिन दो घंटे तक कुछ न हुआ। मैं समझ गया मुझे ठगा गया है।
तभी दिमाग में एक तरकीब आई और मेरी बेवकूफी से चोरों की शामत आ गई। बैंक से पता लगवाया कि लास्ट ट्रांजेक्शन किस एटीएम से हुई है और कितनी हुई है। पता लगा कि पैसे रोहिणी के किसी बैंक से निकाले गए हैं। रोहिणी गया और पुलिस की मदद से उस एटीएम में लगे कैमरे की फुटेज निकलवाई। मैं उन लोगों को पहचान गया। वो पार्क के नजदीक झुग्गियों में रहते थे। चोर पकड़े गए। और मुझे पैसों को छोड़कर खोया हुआ सब वापिस मिल गया।
E Waste & Radioactivity
ई-वेस्ट
इलेक्ट्रॉनिक सामान जब खराब हो जाता है और व्यर्थ समझकर उसे फेंक दिया जाता है, तो उसे ई-वेस्ट कहा जाता है। इसमें खराब होने वाले कंप्यूटर, वीसीआर, स्टिरियो फ्रिज, एसी, सीडी, मोबाइल, टीवी और ओवन आदि शामिल है। इनसे निकलने वाले विषैले पदार्थ मिट्टी, वायु और जल को प्रदूषित करते हैं और कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं।
प्रमुख ई-वेस्ट
लेड : लेड एसिड बैट्री, बुलेट एवं शॉट, पॉली विनाइल क्लोराइड और ग्लास में इसका प्रयोग किया जाता है। रेडिएशन से बचने के लिए और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। जहरीला पदार्थ होने के कारण यह ब्लड और दिमाग संबंधी बीमारी की वजह बना सकता है।
मर्करी : इसका प्रयोग थर्मामीटर, बैरोमीटर में इसका प्रयोग होता है। इसके अलवा लाइटिंग के काम में इसका काफी प्रयोग होता है मसलन फ्लोरेंस ट्यूब और स्विच में इसका इस्तेमाल होता है। इसका मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम पर सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ता है।
कैडमियम : रीचार्जेबल बैटरी, ज्वेलरी, फोटोकॉपी मशीनों आदि में पाया जाता है। कैडमियम ऑक्साइड टीवी में होता है। इसे जलाने पर निकलने वाली विषैली गैसों से फेफड़ोंं पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे कैंसर भी हो सकता है।
आर्सेनिक : वुड प्रेजेरवेशन (लकड़ी का संरक्षण) और विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों में इसका प्रयोग किया जाता है। सर्किट बोर्ड, एलसीडी व कंप्यूटर चिप में इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह पानी में मिलकर जब मानव शरीर में पहुंचता है तो स्किन और किडनी पर बुरा असर बड़ता है।
बेरिलियम : इसका प्रयोग एरोस्पेस इंडस्ट्री, रॉकेट की नोजल औरक टेलीकम्युनिकेशन इंडस्ट्री में होता है। इससे श्वसन संबंधी समस्याएं हो सकती है।
क्या है रेडियो एक्टिविटी
१८९६ में फ्रेंच वैज्ञानिक हेनरी बेकरल ने पाया कि यूरेनियन और यूरेनियम लवणों से कुछ अदृश्य विकिरण स्वत: उत्सार्जित होते रहते हैं। ये विकिरण अपारदर्शी पदार्थों जैसे-कागज आदि को बेधने की क्षमता रखते हैं तथा फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करते हैं। इन विकिरिणों को रेडियोऐक्टिव किरणें या बेकरल के नाम से बेकरल किरणें कहा गया तथा पदार्थों के इस गुण को रेडियोएक्टिविटी कहा गया। ऐसे पदार्थों को जो रेडियोएक्टिव किरणें उत्सर्जित करते हैं रेडियोएक्टिव पदार्थ कहा गया। ये हैं यूरेनियम, रेडियम, प्लूटोनियम, थोरियम और आर्सेनिक आदि।
अल्फा, बीटा और गामा
१९०२ में जेम्स रदरफोर्ड ने रेडियोएक्टिव पदार्थ से उत्सर्जित किरणों का अध्ययन किया और उन्होंने पाया कि ये किरणें तीन प्रकार की होती हैं। विद्युत क्षेत्र में जो किरणें ऋणात्मक प्लेट की ओर मुड़ती हैं वे अल्फा किरणें कहलाती हैं। जो किरणें धनात्मक प्लेट की ओर आकर्षित होती हैं वे बीटा किरणें कहलाती हैं। तीसरे प्रकार की किरणें सीधे बिना विक्षेपित हुए निकल जाती हैं उन्हें गामा किरणें करते हैं।
रेडियम, यूरेनियम, प्लूटोनियम और आर्सेनिक का प्रयोग परमाणु हथियारों को बनाने के लिए किया जाता है, इसलिए ये बाजार में उपलब्ध नहीं हैं। मर्करी पर अब प्रतिबंध लग चुका है लेकिन कोबाल्ट का इस्तेमाल अभी भी दुनिया में विभिन्न कामों में रहा है।
कोबाल्ट ६०
'कोबाल्ट ६०Ó कोबाल्ट का एक रेडियोएक्टिव आइसोटोप है। इसका प्रयोग रासायनिक प्रतिक्रियाओं, विभिन्न चिकित्सा संबंधी कार्यों, औद्योगिक रेडियोगा्राफी, फूड प्रोसेसिंग आदि कार्यों में होता है। विभिन्न अस्पतालों में रेडियोथेरेपी के लिए विकिरण के स्त्रोत के रूप में प्रयोग होता है। कोबाल्ट ६० एक रेडियो आइसोटोप थरमोइलेक्ट्रिक जेनरेटर के लिए एक प्रभावशाली हीटर का काम करता है लेकिन आमतौर पर इसका इस्तेमाल २३८पीयू के रूप में होता है। हालांकि इसकी शक्ति लगभग १० सालों के बाद समाप्त हो जाती है। कोबाल्ट ६० की एक्सरे उर्जा को अवशोषित करना काफी मुश्किल होता है। कोबाल्ट ६० की गामा विकिरणें के संपर्क में आने से कैंसर हो सकता है। मानव शरीर में इसके कुछ हिस्से रक्त और टिश्यू में अवशोषित होकर लिवर, किडनी और हड्डियों को नुकसान पहुंचाते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक सामान जब खराब हो जाता है और व्यर्थ समझकर उसे फेंक दिया जाता है, तो उसे ई-वेस्ट कहा जाता है। इसमें खराब होने वाले कंप्यूटर, वीसीआर, स्टिरियो फ्रिज, एसी, सीडी, मोबाइल, टीवी और ओवन आदि शामिल है। इनसे निकलने वाले विषैले पदार्थ मिट्टी, वायु और जल को प्रदूषित करते हैं और कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं।
प्रमुख ई-वेस्ट
लेड : लेड एसिड बैट्री, बुलेट एवं शॉट, पॉली विनाइल क्लोराइड और ग्लास में इसका प्रयोग किया जाता है। रेडिएशन से बचने के लिए और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। जहरीला पदार्थ होने के कारण यह ब्लड और दिमाग संबंधी बीमारी की वजह बना सकता है।
मर्करी : इसका प्रयोग थर्मामीटर, बैरोमीटर में इसका प्रयोग होता है। इसके अलवा लाइटिंग के काम में इसका काफी प्रयोग होता है मसलन फ्लोरेंस ट्यूब और स्विच में इसका इस्तेमाल होता है। इसका मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम पर सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ता है।
कैडमियम : रीचार्जेबल बैटरी, ज्वेलरी, फोटोकॉपी मशीनों आदि में पाया जाता है। कैडमियम ऑक्साइड टीवी में होता है। इसे जलाने पर निकलने वाली विषैली गैसों से फेफड़ोंं पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे कैंसर भी हो सकता है।
आर्सेनिक : वुड प्रेजेरवेशन (लकड़ी का संरक्षण) और विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों में इसका प्रयोग किया जाता है। सर्किट बोर्ड, एलसीडी व कंप्यूटर चिप में इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह पानी में मिलकर जब मानव शरीर में पहुंचता है तो स्किन और किडनी पर बुरा असर बड़ता है।
बेरिलियम : इसका प्रयोग एरोस्पेस इंडस्ट्री, रॉकेट की नोजल औरक टेलीकम्युनिकेशन इंडस्ट्री में होता है। इससे श्वसन संबंधी समस्याएं हो सकती है।
क्या है रेडियो एक्टिविटी
१८९६ में फ्रेंच वैज्ञानिक हेनरी बेकरल ने पाया कि यूरेनियन और यूरेनियम लवणों से कुछ अदृश्य विकिरण स्वत: उत्सार्जित होते रहते हैं। ये विकिरण अपारदर्शी पदार्थों जैसे-कागज आदि को बेधने की क्षमता रखते हैं तथा फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करते हैं। इन विकिरिणों को रेडियोऐक्टिव किरणें या बेकरल के नाम से बेकरल किरणें कहा गया तथा पदार्थों के इस गुण को रेडियोएक्टिविटी कहा गया। ऐसे पदार्थों को जो रेडियोएक्टिव किरणें उत्सर्जित करते हैं रेडियोएक्टिव पदार्थ कहा गया। ये हैं यूरेनियम, रेडियम, प्लूटोनियम, थोरियम और आर्सेनिक आदि।
अल्फा, बीटा और गामा
१९०२ में जेम्स रदरफोर्ड ने रेडियोएक्टिव पदार्थ से उत्सर्जित किरणों का अध्ययन किया और उन्होंने पाया कि ये किरणें तीन प्रकार की होती हैं। विद्युत क्षेत्र में जो किरणें ऋणात्मक प्लेट की ओर मुड़ती हैं वे अल्फा किरणें कहलाती हैं। जो किरणें धनात्मक प्लेट की ओर आकर्षित होती हैं वे बीटा किरणें कहलाती हैं। तीसरे प्रकार की किरणें सीधे बिना विक्षेपित हुए निकल जाती हैं उन्हें गामा किरणें करते हैं।
रेडियम, यूरेनियम, प्लूटोनियम और आर्सेनिक का प्रयोग परमाणु हथियारों को बनाने के लिए किया जाता है, इसलिए ये बाजार में उपलब्ध नहीं हैं। मर्करी पर अब प्रतिबंध लग चुका है लेकिन कोबाल्ट का इस्तेमाल अभी भी दुनिया में विभिन्न कामों में रहा है।
कोबाल्ट ६०
'कोबाल्ट ६०Ó कोबाल्ट का एक रेडियोएक्टिव आइसोटोप है। इसका प्रयोग रासायनिक प्रतिक्रियाओं, विभिन्न चिकित्सा संबंधी कार्यों, औद्योगिक रेडियोगा्राफी, फूड प्रोसेसिंग आदि कार्यों में होता है। विभिन्न अस्पतालों में रेडियोथेरेपी के लिए विकिरण के स्त्रोत के रूप में प्रयोग होता है। कोबाल्ट ६० एक रेडियो आइसोटोप थरमोइलेक्ट्रिक जेनरेटर के लिए एक प्रभावशाली हीटर का काम करता है लेकिन आमतौर पर इसका इस्तेमाल २३८पीयू के रूप में होता है। हालांकि इसकी शक्ति लगभग १० सालों के बाद समाप्त हो जाती है। कोबाल्ट ६० की एक्सरे उर्जा को अवशोषित करना काफी मुश्किल होता है। कोबाल्ट ६० की गामा विकिरणें के संपर्क में आने से कैंसर हो सकता है। मानव शरीर में इसके कुछ हिस्से रक्त और टिश्यू में अवशोषित होकर लिवर, किडनी और हड्डियों को नुकसान पहुंचाते हैं।
Monday, April 12, 2010
Terror Law In India
तरह तरह के आंतकनिरोधी कानून
टाडा
टाडा (ञ्ज्रष्ठ्र) यानी कि 'टेररिस्ट ऐेंड डिस्रप्टिव एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्टÓ (ञ्जद्गह्म्ह्म्शह्म्द्बह्यह्ल ड्डठ्ठस्र ष्ठद्बह्यह्म्ह्वश्चह्लद्ब1द्ग ्रष्ह्लद्ब1द्बह्लद्बद्गह्य (क्कह्म्द्ग1द्गठ्ठह्लद्बशठ्ठ) ्रष्ह्ल)। पंजाब में आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने के मकसद से यह एक्ट लागू किया गया था। पुलिस इसी कानून के तहत पकड़े गए आतंकवादियों को बुक करती थी। यह देश में १९८५ से १९९५ तक प्रभावी रहा। १९८७ में इसे संशोधित भी किया गया। लेकिन मानवाधिकार संगठनों और कई राजनीतिक पार्टियों के विरोध के चलते मई, १९९५ में इसे समाप्त कर दिया गया। १९९३ मुंबई बम धमाकों से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए एक स्पेशल कोर्ट 'टाडाÓ का गठन भी किया गया था।
पोटा
२८ मार्च, २००२ को एनडीए सरकार ने पोटो (क्कह्म्द्ग1द्गठ्ठह्लद्बशठ्ठ शद्घ ञ्जद्गह्म्ह्म्शह्म्द्बह्यद्व ह्रह्म्स्रद्बठ्ठड्डठ्ठष्द्ग (क्कशह्लश) २००१) के स्थान पर पोटा लागू किया। इस कानून में आतंकवादी कानून, आतंकवादी और इस संदर्भ में जांच एजेंसियों को दिए गए विशेष अधिकारों का वर्णन किया गया। कानून लागू होने के बाद प्रशासन आतंकियों से लडऩे के लिए काफी शक्तिशाली हो गया। वह देश में किसी भी व्यक्ति को इस कानून के तहत न सिर्फ गिरफ्तार कर सकता था, बल्कि कोर्ट में चार्ज फाइल किए बगैर उसे १८० दिनों तक नजरबंद भी रख सकता था। पुलिस गवाह की पहचान को अपने तक रख सकती थी। व्यक्ति के पुलिस के समक्ष दिए गए बयान के आधार पर ही उसे दोषी ठहराया जा सकता था। जबकि सामान्य भारतीय कानून में व्यक्ति कोर्ट के समक्ष इस तरह के बयान या इकबालिया जुर्म से मुकर सकता है। लेकिन पोटा में वह ऐसा नहीं कर सकता।
लेकिन भारतीय न्यायिक प्रशासन और पुलिस में भ्रष्टाचार के कारण इस कड़े कानून का दुरुपयोग होने लगा। इसके विरोध में विभिन्न मानवाधिकार संगठनों और नागरिक स्वतंत्रता समूहों ने आवाज बुलंद की। नतीजतन ७ अक्टूबर, २००४ को में यूपीए सरकार ने इसे खत्म कर दिया।
कानून के प्रभाव में रहते कई जाने माने लोग इसकी चपेट में आए। इसमें तमिल नेता वाइको, डीयू के प्रोफेसर ए.आर.गिलानी और जमात-ए-इस्लामी संगठन के नेता सैयद अली शाह गिलानी को पोटा के तहत गिरफ्तार किया गया था।
२६ नवंबर, २००८ को हुए मुंबई हमलों के बाद केंद्रीय सरकार ने फिर से आतंकवाद निरोधी कानून लागू करने की जरूरत महसूस की और अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट, २००८ लाया गया।
मकोका
मकोका (रू्रष्टह्रष्ट्र) का पूरा नाम है रूड्डद्धड्डह्म्ड्डह्यद्धह्लह्म्ड्ड ष्टशठ्ठह्लह्म्शद्य शद्घ ह्रह्म्द्दड्डठ्ठद्बह्यद्गस्र ष्टह्म्द्बद्वद्ग क्चद्बद्यद्य। इसे महाराष्ट्र सरकार ने अंडरवल्र्ड से जुड़े अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए २४ फरवरी, १९९९ को लागू किया था। जहां पोटा में इकबालिया बयान सिर्फ उसे देनेवाले आरोपी के खिलाफ ही सबूत माना जाता था, वहां मकोका में आरोपित का इकबालिया बयान मामले की सुनवाई के दौरान उसके ही नहीं बल्कि दूसरे आरोपितों, मदद पहुंचाने वालों और साजिश रचने वालों के खिलाफ भी सबूत केतौर पर मान्य होता है।
मकोका का सबसे मुख्य और विवादास्पद प्रावधान है एसपी या डीएसपी रैंक से ऊपर के किसी अधिकारी के सामने दिए गए आरोपित के इकबालिया बयान की अदालत में सबूत के तौर पर मान्य होना। कानून के मुताबिक आरोपित का बयान लिखने वाले पुलिस अधिकारी को फिर इसे चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को भेजना होगा, जो २४ घंटे में आरोपित से मिलेगा और इसकी जांच करेगा कि क्या उसने यह बयान अपनी मर्जी से दिया है।
गुजकोका
गुजकोका (त्रछ्वष्टह्रष्ट्र) मतलब त्रह्वद्भड्डह्म्ड्डह्ल ष्टशठ्ठह्लह्म्शद्य शद्घ ह्रह्म्द्दड्डठ्ठद्बह्यद्गस्र ष्टह्म्द्बद्वद्ग ्रष्ह्ल। यह गुजरात सरकार का विवादास्पद आतंकवाद निवारण बिल है, जिसे राज्य विधानसभा द्वारा अप्रैल, २००३ में पास किया गया। लेकिन राष्ट्रपति की मंजूरी न मिलने के कारण यह अभी कानून नहीं बन सका है। केंद्र को बिल में तीन उपबंधों पर खासा एतराज है विशेषकरउपबंध १६ पर, जो पुलिस के समक्ष किसी व्यक्ति के दोष मानने को मुकदमे में मान्य करता है। जहां केंद्र इसकी तुलना पोटा से करता है वहां राज्य सरकार की दलील है कि गुजकोक लगभग महाराष्ट्र के मकोका के समान है और केंद्र सरकार को उसे मंजूरी देनी चाहिए।
टाडा
टाडा (ञ्ज्रष्ठ्र) यानी कि 'टेररिस्ट ऐेंड डिस्रप्टिव एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्टÓ (ञ्जद्गह्म्ह्म्शह्म्द्बह्यह्ल ड्डठ्ठस्र ष्ठद्बह्यह्म्ह्वश्चह्लद्ब1द्ग ्रष्ह्लद्ब1द्बह्लद्बद्गह्य (क्कह्म्द्ग1द्गठ्ठह्लद्बशठ्ठ) ्रष्ह्ल)। पंजाब में आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने के मकसद से यह एक्ट लागू किया गया था। पुलिस इसी कानून के तहत पकड़े गए आतंकवादियों को बुक करती थी। यह देश में १९८५ से १९९५ तक प्रभावी रहा। १९८७ में इसे संशोधित भी किया गया। लेकिन मानवाधिकार संगठनों और कई राजनीतिक पार्टियों के विरोध के चलते मई, १९९५ में इसे समाप्त कर दिया गया। १९९३ मुंबई बम धमाकों से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए एक स्पेशल कोर्ट 'टाडाÓ का गठन भी किया गया था।
पोटा
२८ मार्च, २००२ को एनडीए सरकार ने पोटो (क्कह्म्द्ग1द्गठ्ठह्लद्बशठ्ठ शद्घ ञ्जद्गह्म्ह्म्शह्म्द्बह्यद्व ह्रह्म्स्रद्बठ्ठड्डठ्ठष्द्ग (क्कशह्लश) २००१) के स्थान पर पोटा लागू किया। इस कानून में आतंकवादी कानून, आतंकवादी और इस संदर्भ में जांच एजेंसियों को दिए गए विशेष अधिकारों का वर्णन किया गया। कानून लागू होने के बाद प्रशासन आतंकियों से लडऩे के लिए काफी शक्तिशाली हो गया। वह देश में किसी भी व्यक्ति को इस कानून के तहत न सिर्फ गिरफ्तार कर सकता था, बल्कि कोर्ट में चार्ज फाइल किए बगैर उसे १८० दिनों तक नजरबंद भी रख सकता था। पुलिस गवाह की पहचान को अपने तक रख सकती थी। व्यक्ति के पुलिस के समक्ष दिए गए बयान के आधार पर ही उसे दोषी ठहराया जा सकता था। जबकि सामान्य भारतीय कानून में व्यक्ति कोर्ट के समक्ष इस तरह के बयान या इकबालिया जुर्म से मुकर सकता है। लेकिन पोटा में वह ऐसा नहीं कर सकता।
लेकिन भारतीय न्यायिक प्रशासन और पुलिस में भ्रष्टाचार के कारण इस कड़े कानून का दुरुपयोग होने लगा। इसके विरोध में विभिन्न मानवाधिकार संगठनों और नागरिक स्वतंत्रता समूहों ने आवाज बुलंद की। नतीजतन ७ अक्टूबर, २००४ को में यूपीए सरकार ने इसे खत्म कर दिया।
कानून के प्रभाव में रहते कई जाने माने लोग इसकी चपेट में आए। इसमें तमिल नेता वाइको, डीयू के प्रोफेसर ए.आर.गिलानी और जमात-ए-इस्लामी संगठन के नेता सैयद अली शाह गिलानी को पोटा के तहत गिरफ्तार किया गया था।
२६ नवंबर, २००८ को हुए मुंबई हमलों के बाद केंद्रीय सरकार ने फिर से आतंकवाद निरोधी कानून लागू करने की जरूरत महसूस की और अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट, २००८ लाया गया।
मकोका
मकोका (रू्रष्टह्रष्ट्र) का पूरा नाम है रूड्डद्धड्डह्म्ड्डह्यद्धह्लह्म्ड्ड ष्टशठ्ठह्लह्म्शद्य शद्घ ह्रह्म्द्दड्डठ्ठद्बह्यद्गस्र ष्टह्म्द्बद्वद्ग क्चद्बद्यद्य। इसे महाराष्ट्र सरकार ने अंडरवल्र्ड से जुड़े अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए २४ फरवरी, १९९९ को लागू किया था। जहां पोटा में इकबालिया बयान सिर्फ उसे देनेवाले आरोपी के खिलाफ ही सबूत माना जाता था, वहां मकोका में आरोपित का इकबालिया बयान मामले की सुनवाई के दौरान उसके ही नहीं बल्कि दूसरे आरोपितों, मदद पहुंचाने वालों और साजिश रचने वालों के खिलाफ भी सबूत केतौर पर मान्य होता है।
मकोका का सबसे मुख्य और विवादास्पद प्रावधान है एसपी या डीएसपी रैंक से ऊपर के किसी अधिकारी के सामने दिए गए आरोपित के इकबालिया बयान की अदालत में सबूत के तौर पर मान्य होना। कानून के मुताबिक आरोपित का बयान लिखने वाले पुलिस अधिकारी को फिर इसे चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को भेजना होगा, जो २४ घंटे में आरोपित से मिलेगा और इसकी जांच करेगा कि क्या उसने यह बयान अपनी मर्जी से दिया है।
गुजकोका
गुजकोका (त्रछ्वष्टह्रष्ट्र) मतलब त्रह्वद्भड्डह्म्ड्डह्ल ष्टशठ्ठह्लह्म्शद्य शद्घ ह्रह्म्द्दड्डठ्ठद्बह्यद्गस्र ष्टह्म्द्बद्वद्ग ्रष्ह्ल। यह गुजरात सरकार का विवादास्पद आतंकवाद निवारण बिल है, जिसे राज्य विधानसभा द्वारा अप्रैल, २००३ में पास किया गया। लेकिन राष्ट्रपति की मंजूरी न मिलने के कारण यह अभी कानून नहीं बन सका है। केंद्र को बिल में तीन उपबंधों पर खासा एतराज है विशेषकरउपबंध १६ पर, जो पुलिस के समक्ष किसी व्यक्ति के दोष मानने को मुकदमे में मान्य करता है। जहां केंद्र इसकी तुलना पोटा से करता है वहां राज्य सरकार की दलील है कि गुजकोक लगभग महाराष्ट्र के मकोका के समान है और केंद्र सरकार को उसे मंजूरी देनी चाहिए।
Saturday, January 30, 2010
बन जाइए एथिकल हैकर! How to become Ethical Hacker
इंट्रो : आईटी क्षेत्र में एथिकल हैकिंग कैरियर केलिहाज से एक नई राह है। एथिकल हैकर बनकर आईटी सिक्योरिटी की फील्ड में युवा अपने भविष्य को उज्ज्वल बना सकते हैं।
पवन दुग्गल --- ''आज कंपनियों को अपनी आईटी सिक्योरिटी सुनिश्चित करने के लिए अच्छे एथिकल हैकरों जरूरत है। इस फील्ड में प्रवेश के लिए आईटी डिगरी होना जरूरी नहीं, इंटरनेट और हैकिंग टेक्नीक्स में तीव्र इच्छा रखने वाले युवा भी यहां आ सकते हैं।ÓÓ
आमतौर पर आईटी क्षेत्र में 'हैकिंगÓ शब्द का इस्तेमाल नकारात्मक तौर पर किया जाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि इसके पीछे रोजगार का एक विस्तृत क्षेत्र छिपा है जिसका नाम है 'आईटी सिक्योरिटीÓ। दरअसल बढ़ते साइबर क्राइम से निपटने और कंप्यूटर सिस्टम की दुनिया में असुरक्षित घुसपैठ रोकने के लिए 'एथिकल हैकिंगÓ एक नई और कारगर फील्ड बनकर उभरी है। आज बड़ी संख्या में देश के युवा आईटी सिक्योरिटी वल्र्ड में कैरियर बनाने के उद्देश्य से इस ओर रुख कर रहे हैं।
क्या होता है काम
एथिकल हैकर एक तरह से आईटी सिक्योरिटी प्रोफेशनल होता है। उसमें वह सभी खूबियां होती है जो एक हैकर में होती है, लेकिन इन खूबियों का इस्तेमाल वह कै्रकिंग में न करके कंप्यूटर और साइबर वल्र्ड में सुरक्षात्मक उद्देश्यों के लिए करते हैं। इन्हें सुरक्षा विश्लेषक, पैनीट्रेशन टेस्टर्स या वाइटहैट हैकर भी कहा जाता है। ये कंपनी के इंफोरमेशन सिस्टम को ब्लैकहैट हैकर्स से सुरक्षित रखते हैं। अकसर ब्लैकहैट हैकर कंपनी के आईटी नेटवर्किंग सिस्टम या सर्वर में तकनीकी घुसपैठ कर उसे नुकसान पहुंचाते हैं। इन गड़बडिय़ों को रोकना इन्हीं प्रोफेशनल्स का काम होता है। कंपनी के कंप्यूटर नेटवर्क एक्सेस की सुरक्षा नीतियां क्या होंगी, इसकी जिम्मेदारी भी इन्हीं लोगों की होती है। इन नीतियों में इंटरनेट एक्सेस मैथड्स, पासवर्ड यूसेज और सर्वर द्वारा डाटा एक्सेस आदि शामिल होते हैं।
कैसे बन सकते हैं एथिकल हैकर
जाने माने साइबर एक्टपर्ट पवन दुग्गल ने बताया कि यह फील्ड टेक्नीकल बैग्रांड की मांग करती है, यही वजह है कि आज आईटी ग्रेजुएट्स बढ़ी संख्या में इस फील्ड में भविष्य बना रहे हैं। लेकिन यहां आने के लिए किसी आईटी डिगरी अनिवार्य नहीं होती। उन्होंने बताया युवाओं में इस ओर बढ़ते रुझान के कारण देश-विदेश में विभिन्न संस्थान एथिकल हैकिंग समेत आईटी सिक्योरिटी से संबंधित बहुतेरे कोर्स संचालित करने लगे हैं, जिसे कर नॉन टेक्नीकल लाइन के विद्यार्थी भी इस फील्ड में कैरियर बना सकते है, बशर्ते नवीनतम हैकिंग टेक्नोलॉजी में उनकी जबरदस्त रुचि हो।
पवन दुग्गल ने बताया कि एक प्रोफेशनल एथिकल हैकर बनने के लिए बेसिक एथिकल हैकिंग ट्रेनिंग सबसे जरूरी है। हैदराबाद में स्कूल ऑफ एथिकल हैकिंग के अलावा देश भर में इस कोर्स के लिए बहुत से संस्थान खुले हए हैं। 'ई-काउंसिल सर्टिफाइड एथिकल हैकरÓ कोर्स से इस फील्ड में कैरियर की शुरुआत की जा सकती है। ई-काउंसिल द्वारा संचालित इस कोर्स को करने के लिए आवेदक को विंडो या लाइनेक्स जैसे किसी एक ऑपरेटिंग सिस्टम का ज्ञान होना चाहिए। साथ ही नेटवर्किंग में एक साल का अनुभव और ओएसआई एवं टीसीपी/आईपी मॉडल्स के बारे में भी अच्छी जानकारी होनी चाहिए। ईसी-काउंसिल द्वारा संचालित विभिन्न आईटी सिक्योरिटी कोर्सेज की अधिक जानकारी के लिए इसकी वेबसाइट द्धह्लह्लश्च://222.द्गष्ष्शह्वठ्ठष्द्बद्य.शह्म्द्द पर लॉग-इन कर सकते हैं। वैसे इस फील्ड में कैरियर बनाने के लिए भारत के अनेक संस्थानों में 'अंकित फारिया सर्टिफाइड एथिकल हैकिंग कोर्सÓ उपलब्ध है। इसके अलावा ऑनलाइन कोर्स का विकल्प भी खुला है।
कहां है रोजगार
नेसकॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगले साल मार्केट में आईटी सिक्योरिटी एक्सपर्ट की मांग १० लाख तक पहुंच जाएगी।
पवन दुग्गल ने बताया कि आज साइबर और आईटी एक्ट के चलते तमाम कंपनियां कंप्यूटर, नेटवर्किंग और साइबर सिस्टम की सुरक्षा को लेकर काफी एहतियात बरत रही हैं। एथिकल हैकर ही उन्हें यह सिक्योरिटी मुहैया कराकर कानूनी झमेलों से बचाते हैं। कोर्स करने के बाद विभिन्न मल्टीनेशनल कंपनियों, छोटी और मध्यम आकार की इंटरप्राइसिस में बड़े पैमाने सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेटर, नेटवर्क सिक्योरिटी स्पेशलिस्ट या सिक्योरिटी विश्लेषक जैसे विभिन्न पदों पर नौकरियां मिल सकती हैं। बैंक, बीपीओ, साइबर सिक्योरिटी और फोरेंसिक आर्गेनाइजेशन्स में इन प्रोफेशनल्स के लिए बेशुमार रोजगार के मौके हैं। सरकारी विभागों की साइबर सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाली विभिन्न संस्थाओं में भी मौका मिल सकता है। समय समय पर अनेक आईटी कंपनियां अन्य कंपनियों की साइबर सिस्टम सिक्योर करने केलिए कॉन्ट्रेक्ट लेती है, जहां पार्ट टाइम काम करने का मौका भी मिल सकता है। इसके अलावा अगर आप जॉब में इंटरस्टेड नहीं है तो बतौर साइबर सिक्योरिटी कंसल्टेंट भी अच्छा पैसा कमा सकते हैं।
कमाई
इस क्षेत्र में आपको कमाई को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं। यहां फ्रैशर को सालाना ३ से ४.५ लाख रुपये की नौकरी मिल सकती है। चार से पांच साल का अनुभव होने केबाद बड़ी आईटी साफ्टवेयर कंपनियों में रोजगार मिल सकता है, जहां १० से १४ लाख का पैकेज मिलने की उम्मीद होती है। और अधिक अनुभव होने पर विदेशों में मौजूद नामी-गिरामी आईटी कंपनियों के साथ काम करने का अवसर भी मिल सकता है।
बॉक्स मैटर
इस क्षेत्र के शिखर पर पहुंच चुकेअंकित फारिया आईटी सिक्योरिटी प्रोफेशनल्स के समक्ष एक बेहतरीन मिसाल हैं। इस फील्ड में अपनी जबरदस्त पैठ जमा चुके२४ वर्षीय अंकित आज विश्वप्रसिद्घ एथिकल हैकर हैं। वह इस विषय पर कई किताबें भी लिख चुकेहैं। वर्तमान में दिल्ली पुलिस को साइबर सिक्योरिटी की टे्रनिंग दे रहे हैं।
बॉक्स मैटर
कोर्सेज
सर्टिफाइड एथिकल हैकर
कंप्यूटर हैकिंग फॉरेंसिक इंवेस्टिगेटर
ईसी-काउंसिल सर्टिफिकेट सिक्योरिटी एनालिस्ट
सर्टिफाइड नेटवर्क डिफेंस आर्किटेक्ट
अंकित फारिया सर्टिफाइड एथिकल हैकिंग
पवन दुग्गल --- ''आज कंपनियों को अपनी आईटी सिक्योरिटी सुनिश्चित करने के लिए अच्छे एथिकल हैकरों जरूरत है। इस फील्ड में प्रवेश के लिए आईटी डिगरी होना जरूरी नहीं, इंटरनेट और हैकिंग टेक्नीक्स में तीव्र इच्छा रखने वाले युवा भी यहां आ सकते हैं।ÓÓ
आमतौर पर आईटी क्षेत्र में 'हैकिंगÓ शब्द का इस्तेमाल नकारात्मक तौर पर किया जाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि इसके पीछे रोजगार का एक विस्तृत क्षेत्र छिपा है जिसका नाम है 'आईटी सिक्योरिटीÓ। दरअसल बढ़ते साइबर क्राइम से निपटने और कंप्यूटर सिस्टम की दुनिया में असुरक्षित घुसपैठ रोकने के लिए 'एथिकल हैकिंगÓ एक नई और कारगर फील्ड बनकर उभरी है। आज बड़ी संख्या में देश के युवा आईटी सिक्योरिटी वल्र्ड में कैरियर बनाने के उद्देश्य से इस ओर रुख कर रहे हैं।
क्या होता है काम
एथिकल हैकर एक तरह से आईटी सिक्योरिटी प्रोफेशनल होता है। उसमें वह सभी खूबियां होती है जो एक हैकर में होती है, लेकिन इन खूबियों का इस्तेमाल वह कै्रकिंग में न करके कंप्यूटर और साइबर वल्र्ड में सुरक्षात्मक उद्देश्यों के लिए करते हैं। इन्हें सुरक्षा विश्लेषक, पैनीट्रेशन टेस्टर्स या वाइटहैट हैकर भी कहा जाता है। ये कंपनी के इंफोरमेशन सिस्टम को ब्लैकहैट हैकर्स से सुरक्षित रखते हैं। अकसर ब्लैकहैट हैकर कंपनी के आईटी नेटवर्किंग सिस्टम या सर्वर में तकनीकी घुसपैठ कर उसे नुकसान पहुंचाते हैं। इन गड़बडिय़ों को रोकना इन्हीं प्रोफेशनल्स का काम होता है। कंपनी के कंप्यूटर नेटवर्क एक्सेस की सुरक्षा नीतियां क्या होंगी, इसकी जिम्मेदारी भी इन्हीं लोगों की होती है। इन नीतियों में इंटरनेट एक्सेस मैथड्स, पासवर्ड यूसेज और सर्वर द्वारा डाटा एक्सेस आदि शामिल होते हैं।
कैसे बन सकते हैं एथिकल हैकर
जाने माने साइबर एक्टपर्ट पवन दुग्गल ने बताया कि यह फील्ड टेक्नीकल बैग्रांड की मांग करती है, यही वजह है कि आज आईटी ग्रेजुएट्स बढ़ी संख्या में इस फील्ड में भविष्य बना रहे हैं। लेकिन यहां आने के लिए किसी आईटी डिगरी अनिवार्य नहीं होती। उन्होंने बताया युवाओं में इस ओर बढ़ते रुझान के कारण देश-विदेश में विभिन्न संस्थान एथिकल हैकिंग समेत आईटी सिक्योरिटी से संबंधित बहुतेरे कोर्स संचालित करने लगे हैं, जिसे कर नॉन टेक्नीकल लाइन के विद्यार्थी भी इस फील्ड में कैरियर बना सकते है, बशर्ते नवीनतम हैकिंग टेक्नोलॉजी में उनकी जबरदस्त रुचि हो।
पवन दुग्गल ने बताया कि एक प्रोफेशनल एथिकल हैकर बनने के लिए बेसिक एथिकल हैकिंग ट्रेनिंग सबसे जरूरी है। हैदराबाद में स्कूल ऑफ एथिकल हैकिंग के अलावा देश भर में इस कोर्स के लिए बहुत से संस्थान खुले हए हैं। 'ई-काउंसिल सर्टिफाइड एथिकल हैकरÓ कोर्स से इस फील्ड में कैरियर की शुरुआत की जा सकती है। ई-काउंसिल द्वारा संचालित इस कोर्स को करने के लिए आवेदक को विंडो या लाइनेक्स जैसे किसी एक ऑपरेटिंग सिस्टम का ज्ञान होना चाहिए। साथ ही नेटवर्किंग में एक साल का अनुभव और ओएसआई एवं टीसीपी/आईपी मॉडल्स के बारे में भी अच्छी जानकारी होनी चाहिए। ईसी-काउंसिल द्वारा संचालित विभिन्न आईटी सिक्योरिटी कोर्सेज की अधिक जानकारी के लिए इसकी वेबसाइट द्धह्लह्लश्च://222.द्गष्ष्शह्
कहां है रोजगार
नेसकॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगले साल मार्केट में आईटी सिक्योरिटी एक्सपर्ट की मांग १० लाख तक पहुंच जाएगी।
पवन दुग्गल ने बताया कि आज साइबर और आईटी एक्ट के चलते तमाम कंपनियां कंप्यूटर, नेटवर्किंग और साइबर सिस्टम की सुरक्षा को लेकर काफी एहतियात बरत रही हैं। एथिकल हैकर ही उन्हें यह सिक्योरिटी मुहैया कराकर कानूनी झमेलों से बचाते हैं। कोर्स करने के बाद विभिन्न मल्टीनेशनल कंपनियों, छोटी और मध्यम आकार की इंटरप्राइसिस में बड़े पैमाने सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेटर, नेटवर्क सिक्योरिटी स्पेशलिस्ट या सिक्योरिटी विश्लेषक जैसे विभिन्न पदों पर नौकरियां मिल सकती हैं। बैंक, बीपीओ, साइबर सिक्योरिटी और फोरेंसिक आर्गेनाइजेशन्स में इन प्रोफेशनल्स के लिए बेशुमार रोजगार के मौके हैं। सरकारी विभागों की साइबर सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाली विभिन्न संस्थाओं में भी मौका मिल सकता है। समय समय पर अनेक आईटी कंपनियां अन्य कंपनियों की साइबर सिस्टम सिक्योर करने केलिए कॉन्ट्रेक्ट लेती है, जहां पार्ट टाइम काम करने का मौका भी मिल सकता है। इसके अलावा अगर आप जॉब में इंटरस्टेड नहीं है तो बतौर साइबर सिक्योरिटी कंसल्टेंट भी अच्छा पैसा कमा सकते हैं।
कमाई
इस क्षेत्र में आपको कमाई को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं। यहां फ्रैशर को सालाना ३ से ४.५ लाख रुपये की नौकरी मिल सकती है। चार से पांच साल का अनुभव होने केबाद बड़ी आईटी साफ्टवेयर कंपनियों में रोजगार मिल सकता है, जहां १० से १४ लाख का पैकेज मिलने की उम्मीद होती है। और अधिक अनुभव होने पर विदेशों में मौजूद नामी-गिरामी आईटी कंपनियों के साथ काम करने का अवसर भी मिल सकता है।
बॉक्स मैटर
इस क्षेत्र के शिखर पर पहुंच चुकेअंकित फारिया आईटी सिक्योरिटी प्रोफेशनल्स के समक्ष एक बेहतरीन मिसाल हैं। इस फील्ड में अपनी जबरदस्त पैठ जमा चुके२४ वर्षीय अंकित आज विश्वप्रसिद्घ एथिकल हैकर हैं। वह इस विषय पर कई किताबें भी लिख चुकेहैं। वर्तमान में दिल्ली पुलिस को साइबर सिक्योरिटी की टे्रनिंग दे रहे हैं।
बॉक्स मैटर
कोर्सेज
सर्टिफाइड एथिकल हैकर
कंप्यूटर हैकिंग फॉरेंसिक इंवेस्टिगेटर
ईसी-काउंसिल सर्टिफिकेट सिक्योरिटी एनालिस्ट
सर्टिफाइड नेटवर्क डिफेंस आर्किटेक्ट
अंकित फारिया सर्टिफाइड एथिकल हैकिंग
Subscribe to:
Posts (Atom)