ई-वेस्ट
इलेक्ट्रॉनिक सामान जब खराब हो जाता है और व्यर्थ समझकर उसे फेंक दिया जाता है, तो उसे ई-वेस्ट कहा जाता है। इसमें खराब होने वाले कंप्यूटर, वीसीआर, स्टिरियो फ्रिज, एसी, सीडी, मोबाइल, टीवी और ओवन आदि शामिल है। इनसे निकलने वाले विषैले पदार्थ मिट्टी, वायु और जल को प्रदूषित करते हैं और कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं।
प्रमुख ई-वेस्ट
लेड : लेड एसिड बैट्री, बुलेट एवं शॉट, पॉली विनाइल क्लोराइड और ग्लास में इसका प्रयोग किया जाता है। रेडिएशन से बचने के लिए और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। जहरीला पदार्थ होने के कारण यह ब्लड और दिमाग संबंधी बीमारी की वजह बना सकता है।
मर्करी : इसका प्रयोग थर्मामीटर, बैरोमीटर में इसका प्रयोग होता है। इसके अलवा लाइटिंग के काम में इसका काफी प्रयोग होता है मसलन फ्लोरेंस ट्यूब और स्विच में इसका इस्तेमाल होता है। इसका मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम पर सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ता है।
कैडमियम : रीचार्जेबल बैटरी, ज्वेलरी, फोटोकॉपी मशीनों आदि में पाया जाता है। कैडमियम ऑक्साइड टीवी में होता है। इसे जलाने पर निकलने वाली विषैली गैसों से फेफड़ोंं पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे कैंसर भी हो सकता है।
आर्सेनिक : वुड प्रेजेरवेशन (लकड़ी का संरक्षण) और विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों में इसका प्रयोग किया जाता है। सर्किट बोर्ड, एलसीडी व कंप्यूटर चिप में इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह पानी में मिलकर जब मानव शरीर में पहुंचता है तो स्किन और किडनी पर बुरा असर बड़ता है।
बेरिलियम : इसका प्रयोग एरोस्पेस इंडस्ट्री, रॉकेट की नोजल औरक टेलीकम्युनिकेशन इंडस्ट्री में होता है। इससे श्वसन संबंधी समस्याएं हो सकती है।
क्या है रेडियो एक्टिविटी
१८९६ में फ्रेंच वैज्ञानिक हेनरी बेकरल ने पाया कि यूरेनियन और यूरेनियम लवणों से कुछ अदृश्य विकिरण स्वत: उत्सार्जित होते रहते हैं। ये विकिरण अपारदर्शी पदार्थों जैसे-कागज आदि को बेधने की क्षमता रखते हैं तथा फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करते हैं। इन विकिरिणों को रेडियोऐक्टिव किरणें या बेकरल के नाम से बेकरल किरणें कहा गया तथा पदार्थों के इस गुण को रेडियोएक्टिविटी कहा गया। ऐसे पदार्थों को जो रेडियोएक्टिव किरणें उत्सर्जित करते हैं रेडियोएक्टिव पदार्थ कहा गया। ये हैं यूरेनियम, रेडियम, प्लूटोनियम, थोरियम और आर्सेनिक आदि।
अल्फा, बीटा और गामा
१९०२ में जेम्स रदरफोर्ड ने रेडियोएक्टिव पदार्थ से उत्सर्जित किरणों का अध्ययन किया और उन्होंने पाया कि ये किरणें तीन प्रकार की होती हैं। विद्युत क्षेत्र में जो किरणें ऋणात्मक प्लेट की ओर मुड़ती हैं वे अल्फा किरणें कहलाती हैं। जो किरणें धनात्मक प्लेट की ओर आकर्षित होती हैं वे बीटा किरणें कहलाती हैं। तीसरे प्रकार की किरणें सीधे बिना विक्षेपित हुए निकल जाती हैं उन्हें गामा किरणें करते हैं।
रेडियम, यूरेनियम, प्लूटोनियम और आर्सेनिक का प्रयोग परमाणु हथियारों को बनाने के लिए किया जाता है, इसलिए ये बाजार में उपलब्ध नहीं हैं। मर्करी पर अब प्रतिबंध लग चुका है लेकिन कोबाल्ट का इस्तेमाल अभी भी दुनिया में विभिन्न कामों में रहा है।
कोबाल्ट ६०
'कोबाल्ट ६०Ó कोबाल्ट का एक रेडियोएक्टिव आइसोटोप है। इसका प्रयोग रासायनिक प्रतिक्रियाओं, विभिन्न चिकित्सा संबंधी कार्यों, औद्योगिक रेडियोगा्राफी, फूड प्रोसेसिंग आदि कार्यों में होता है। विभिन्न अस्पतालों में रेडियोथेरेपी के लिए विकिरण के स्त्रोत के रूप में प्रयोग होता है। कोबाल्ट ६० एक रेडियो आइसोटोप थरमोइलेक्ट्रिक जेनरेटर के लिए एक प्रभावशाली हीटर का काम करता है लेकिन आमतौर पर इसका इस्तेमाल २३८पीयू के रूप में होता है। हालांकि इसकी शक्ति लगभग १० सालों के बाद समाप्त हो जाती है। कोबाल्ट ६० की एक्सरे उर्जा को अवशोषित करना काफी मुश्किल होता है। कोबाल्ट ६० की गामा विकिरणें के संपर्क में आने से कैंसर हो सकता है। मानव शरीर में इसके कुछ हिस्से रक्त और टिश्यू में अवशोषित होकर लिवर, किडनी और हड्डियों को नुकसान पहुंचाते हैं।
Saturday, May 8, 2010
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