हाल में भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में परमाणु दायित्व विधेयक कई संशोधनों के बाद पारित हुआ। पिछले कई समय से सांसद में इस मुद्दे पर भारी हंगामा चल रहा था। जानते हैं इस विधेयक और इससे जुड़े विवादों के बारे में।
क्या है ये विधेयक
दरअसल इसके लागू होने के बाद ऐसा कानून बनेगा, जिससे कि असैन्य परमाणु संयंत्र में दुर्घटना होने की स्थिति में संयंत्र के संचालक (ऑपरेटर) की जिम्मेदारी तय की जा सके। इसी कानून से दुर्घटना प्रभावित लोगों को मुआवजा मिल सकेगा। अमरीका और भारत के बीच अक्टूबर २००८ में असैन्य परमाणु समझौता हुआ था। अमरीका और अन्य परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों से भारत को तकनीक और परमाणु सामग्री की आपूर्ति तब शुरु हो सकेगी, जब वह परमाणु दायित्व विधेयक के जरिए एक कानून बना लेगा।
विवादित धारा १७
धारा १७ (बी) दुर्घटना में आपूर्तिकर्ता के दायित्व से जुड़ी है। यह विवाद परमाणु आपूर्तिकर्ताओं को परिवहन के दौरान या इसके बाद होने वाली दुर्घटनाओं को लिए जवाबदेह ठहराने को लेकर था। विधेयक में आपूर्तिकर्ताओं को जवाबदेह नहीं ठहराया गया था, लेकिन अब संशोधित मसौदे के मुताबिक परमाणु संयंत्र का संचालक आपूर्तिकर्ता से मुआवजा तब मांग सकेगा, जब- (ए) उसके ऐसे अधिकार का उल्लेख सौदे में लिखित रूप से हो, (बी) परमाणु दुर्घटना घटिया या खराब उपकरणों की आपूर्ति की वजह से हुई हो, (सी) परमाणु दुर्घटना किसी व्यक्ति या फर्म की मंशा या चूक के कारण हुई हो।
इस धारा की शब्दावली को लेकर भी विवाद उठा था। धारा १७ के उपबंध (अ) और (ब) के बीच 'औरÓ शब्द के इस्तेमाल को लेकर भी विवाद पैदा हुआ। विरोध के बाद सरकार ने 'औरÓ शब्द को निकाल दिया था, लेकिन '(इन्टेन्ट) इरादेÓ शब्द को शामिल कर दिया। विपक्ष ने इस शब्द का यह कहकर विरोध किया कि परमाणु हादसे के संबंध में इरादा शब्द के जिक्र से आपूर्तिकर्ता को उसकी जिम्मेदार से बच निकलने का रास्ता मिल सकता है, क्योंकि इस तरह की किसी दुर्घटना में इरादा साबित करना मुश्किल होगा। अब संशोधन के तहत यह धारा १७ बी से यह शब्द भी हटा लिया गया है। यहां ऑपरेटर या संचालक न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया होगी। जबकि अमेरिका की जीई और वेस्टिंगहाउस तथा फ्रांस की अरेवा जैसी कंपनियां आपूर्तिकर्ता होंगी।
अन्य विवाद
इस विधेयक में मुआवजे की राशि को लेकर भी विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई थी। पहले इसके लिए विधेयक में संचालक को अधिकतम ५०० करोड़ रुपयों का मुआवजा देने का प्रावधान था, लेकिन विपक्ष की आपत्ति के बाद सरकार ने इसे तीन गुना करके १५०० करोड़ रुपए करने को मंजूरी दे दी। मुआवजे के लिए दावा करने की समय सीमा को लेकर भी सरकार और विपक्ष के बीच काफी मतभेद थे। अब सरकार ने दावा करने की समय सीमा को १० वर्षों से बढ़ाकर २० वर्ष करने का निर्णय लिया है। असैन्य परमाणु क्षेत्र में निजी कंपनियों का प्रवेश भी विवादित विषय रहा। सीएससी भी एक विवादित विषय रहा। सीएससी (कन्वेंशन फॉर सप्लीमेंटरी कंपेनसेशन) एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिस पर हस्ताक्षर करने का मतलब होगा, कि किसी भी दुर्घटना की स्थिति में दावाकर्ता सिर्फ अपने देश में मुआवजे का मुकदमा कर सकेगा। यानी दावाकर्ता को किसी अन्य देश की अदालत में जाने का अधिकार नहीं होगा।
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Monday, September 6, 2010
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nice
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