Monday, May 17, 2010

भारत में हुए बड़े घोटाले | अन्ना-रामदेव एक साथ

हाल ही में आईपीएल टीमों की बोली में घपलेबाजी और प्रसारण अधिकारों में धांधली का मामला काफी चर्चा में रहा। आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी को पद से निलंबित कर दिया गया। दरअसल आजादी से अब तक देश में काफी बड़े घोटालों का इतिहास रहा है। जानते हैं इस इतिहास को संक्षेप में..
जीप पर्चेज (१९४८)
आजादी के बाद भारत सरकार ने एक लंदन की कंपनी से २००० जीपों को सौदा किया। सौदा ८० लाख रुपये का था। लेकिन केवल १५५ जीप ही मिल पाई। घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी.के.कृष्ण मेनन का हाथ होने की बात सामने आई। लेकिन १९५५ में केस बंद कर दिया गया। जल्द ही मेनन नेहरु केबिनेट में शामिल हो गए।
साइकिल इंपोर्ट (१९५१): तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सेकरेटरी एस.ए. वेंकटरमन ने एक कंपनी को साइकिल आयात कोटा दिए जाने के बदले में रिश्वत ली। इसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा।
मुंध्रा मैस (१९५८) : हरिदास मुंध्रा द्वारा स्थापित छह कंपनियों में लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के १.२ करोड़ रुपये से संबंधित मामला उजागर हुआ। इसमें तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी, वित्त सचिव एच.एम.पटेल, एलआईसी चेयरमैन एल एस वैद्ययानाथन का नाम आया। कृष्णामचारी को इस्तीफा देना पड़ा और मुंध्रा को जेल जाना पड़ा।
तेजा लोन : १९६० में एक बिजनेसमैन धर्म तेजा ने एक शिपिंग कंपनी शुरू करने केलिए सरकार से २२ करोड़ रुपये का लोन लिया। लेकिन बाद में धनराशि को देश से बाहर भेज दिया। उन्हें यूरोप में गिरफ्तार किया गया और छह साल की कैद हुई।
पटनायक मामला : १९६५ में उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक को इस्तीफा देने केलिए मजबूर किया गया। उन पर अपनी निजी स्वामित्व कंपनी 'कलिंग ट्यूब्सÓ को एक सरकारी कांट्रेक्ट दिलाने केलिए मदद करने का आरोप था।
मारुति घोटाला : मारुति कंपनी बनने से पहले यहां एक घोटाला हुआ जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम आया। मामले में पेसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी।
कुओ(्यह्वश) ऑयल डील : १९७६ में तेल के गिरते दामों के मददेनजर इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने हांग कांग की एक फर्जी कंपनी से ऑयल डील की। इसमें भारत सरकार को १३ करोड़ का चूना लगा। माना गया इस घपले में इंदिरा और संजय गांधी का भी हाथ है।
अंतुले ट्रस्ट : १९८१ में महाराष्ट्र में सीमेंट घोटाला हुआ। तत्कालीन महाराष्ट्र मुख्यमंत्री एआर अंतुले पर आरोप लगा कि वह लोगों के कल्याण के लिए प्रयोग किए जाने वाला सीमेंट, प्राइवेट बिल्डर्स को दे रहे हैं।
एचडीडब्लू कमिशन्स (१९८७) : जर्मनी की पनडुब्बी निर्मित करने वाले कंपनी एचडीडब्लू को काली सूची में डाल दिया गया। मामला था कि उसने २० करोड़ रुपये बैतोर कमिशन दिए हैं। २००५ में केस बंद कर दिया गया। फैसला एचडीडब्लू के पक्ष में रहा।
बोफोर्स घोटाला : १९८७ में एक स्वीडन की कंपनी बोफोर्स एबी से रिश्वत लेने के मामले में राजीव गांधी समेत कई बेड़ नेता फंसे। मामला था कि भारतीय १५५ मिमी. के फील्ड हॉवीत्जर के बोली में नेताओं ने करीब ६४ करोड़ रुपये का घपला किया है।
सिक्योरिटी स्कैम : १९९२ में हर्षद मेहता ने धोखाधाड़ी से बैंको का पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश कर दिया, जिससे स्टॉक मार्केट को करीब ५००० करोड़ रुपये का घाटा हुआ।
इंडियन बैंक : १९९२ में बैंक से छोटे कॉरपोरेट और एक्सपोटर्स ने बैंक से करीब १३००० करोड़ रुपये उधार लिए। ये धनराशि उन्होंने कभी नहीं लौटाई। उस वक्त बैंक के चेयरमैन एम. गोपालाकृष्णन थे।
चारा घोटाला : १९९६ में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और अन्य नेताओं ने राज्य के पशु पालन विभाग को लेकर धोखाबाजी से लिए गए ९५० करोड़ रुपये कथित रूप से निगल लिए।
तहलका : इस ऑनलाइन न्यूज पॉर्टल ने स्टिंग ऑपरेशन के जारिए ऑर्मी ऑफिसर और राजनेताओं को रिश्वत लेते हुए पकड़ा। यह बात सामने आई कि सरकार द्वारा की गई १५ डिफेंस डील में काफी घपलेबाजी हुई है और इजराइल से की जाने वाली बारक मिसाइल डीलभी इसमें से एक है।
स्टॉक मार्केट : स्टॉक ब्रोकर केतन पारीख ने स्टॉक मार्केट में १,१५,००० करोड़ रुपये का घोटाला किया। दिसंबर, २००२ में इन्हें गिरफ्तार किया गया।
स्टांप पेपर स्कैम : यह करोड़ो रुपये के फर्जी स्टांप पेपर का घोटाला था। इस रैकट को चलाने वाला मास्टरमाइंड अब्दुल करीम तेलगी था।

सत्यम घोटाला
२००८ में देश की चौथी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी सत्यम कंप्यूटर्स के संस्थापक अध्यक्ष रामलिंगा राजू द्वारा ८००० करोड़ रूपये का घोटाले का मामला सामने आया। राजू ने माना कि पिछले सात वर्षों से उसने कंपनी के खातों में हेरा फेरी की।

मनी लांडरिंग : २००९ में मधु कोड़ा को चार हजार करोड़ रुपये की मनी लांडरिंग का दोषी पाया गया। मधु कोड़ा की इस संपत्ति में हॉटल्स, तीन कंपनियां, कलकत्ता में प्रॉपर्टी, थाइलैंड में एक हॉटल और लाइबेरिया ने कोयले की खान शामिल थी।

Saturday, May 8, 2010

जब बेफकूफी लालचीपन पर भारी पड़ जाए

कभी कभी बेेफकूफी लालचीपन पर भारी पड़ जाती है। शायद इसीलिए कि बेफकूफी में थोड़ी इमानदारी छिपी होती है। करीब तीन साल पहले की बात है। गर्मियों की छुटिटयों में मैं जोगिंग करने पार्क जाया करता था। पार्क मेरे घर से ढाई किलोमीटर दूर है, तो स्कूटर पर जाया करता था। एक दिन जब पार्क से बाहर निकला तो देखा मेरा स्कूटर गायब है। आस पास की जगह खंगाल ली लेकिन नहीं मिला। स्कूटर पार्क करते वक्त मैं अपना पर्स डिक्की में रख दिया करता था क्योंकि पर्स जेब में रखकर भागने में काई दिक्कत आती थी। पर्स में ऑरिजनल लाइसेंस, एटीएम कार्ड, कॉलेज और लाइब्रेरी कार्ड थे। स्कूटर तो गया सो गया, साथ में जरूरी चीजे भी गईं। दिल बैचेन और दुखी हो उठा था, क्योंकि पास के थाने में गया एफआई लिखवाने।
मुझे पता था ये लोग एफआईआर लिखने में आनाकानी करेंगे इसलिए मैंने जुगाड़ लगवाकर एफआईआर दर्ज करवा ही दी। जुगाड़ तगड़ा था इसीलिए आस पास की पीसीआर और थानों में खबर कर दी गई। ठीक एक घंटे बाद मेरे मोबाइल पर फोन आया और एक शख्स बोला कि हम प्रशांत विहार थाने से बोल रहे, हमने आपका स्कूटर चोरी करने वाले को पकड़ लिया है। इसे हमने एक एटीएम के अंदर पकड़ा है। वो बोले आप अपना पिन न. बताइए इससे पुष्टि हो जाएगी कि ये एटीएम कार्ड आपका ही है और ये लोग धोखाधड़ी से एटीएम से पैसे निकाल रहे हैं। मैं असमंजस में पड़ गया और आनन-फानन में वो गुप्त न. बता दिया। बताने की एक वजह यह भी थी कि मैं अकसर अपने एटीएम ज्यादा सीरियस नहीं रहता था क्योंकि उसमें कभी ३०० रुपये से ज्यादा पैसे नहीं रहे थे। लेकिन मैं जानता हूं मुझे बताना नहीं चाहिए था लेकिन वो कहावत है न 'विनाश काले विपरीत बुद्घिÓ। न. सुनते ही उन्होंने बोला आप उसी पार्क में पहुंचिए हम आपका स्कूटर लेकर आते हैं। लेकिन दो घंटे तक कुछ न हुआ। मैं समझ गया मुझे ठगा गया है।
तभी दिमाग में एक तरकीब आई और मेरी बेवकूफी से चोरों की शामत आ गई। बैंक से पता लगवाया कि लास्ट ट्रांजेक्शन किस एटीएम से हुई है और कितनी हुई है। पता लगा कि पैसे रोहिणी के किसी बैंक से निकाले गए हैं। रोहिणी गया और पुलिस की मदद से उस एटीएम में लगे कैमरे की फुटेज निकलवाई। मैं उन लोगों को पहचान गया। वो पार्क के नजदीक झुग्गियों में रहते थे। चोर पकड़े गए। और मुझे पैसों को छोड़कर खोया हुआ सब वापिस मिल गया।

E Waste & Radioactivity

ई-वेस्ट
इलेक्ट्रॉनिक सामान जब खराब हो जाता है और व्यर्थ समझकर उसे फेंक दिया जाता है, तो उसे ई-वेस्ट कहा जाता है। इसमें खराब होने वाले कंप्यूटर, वीसीआर, स्टिरियो फ्रिज, एसी, सीडी, मोबाइल, टीवी और ओवन आदि शामिल है। इनसे निकलने वाले विषैले पदार्थ मिट्टी, वायु और जल को प्रदूषित करते हैं और कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं।

प्रमुख ई-वेस्ट
लेड : लेड एसिड बैट्री, बुलेट एवं शॉट, पॉली विनाइल क्लोराइड और ग्लास में इसका प्रयोग किया जाता है। रेडिएशन से बचने के लिए और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। जहरीला पदार्थ होने के कारण यह ब्लड और दिमाग संबंधी बीमारी की वजह बना सकता है।

मर्करी : इसका प्रयोग थर्मामीटर, बैरोमीटर में इसका प्रयोग होता है। इसके अलवा लाइटिंग के काम में इसका काफी प्रयोग होता है मसलन फ्लोरेंस ट्यूब और स्विच में इसका इस्तेमाल होता है। इसका मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम पर सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ता है।

कैडमियम : रीचार्जेबल बैटरी, ज्वेलरी, फोटोकॉपी मशीनों आदि में पाया जाता है। कैडमियम ऑक्साइड टीवी में होता है। इसे जलाने पर निकलने वाली विषैली गैसों से फेफड़ोंं पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे कैंसर भी हो सकता है।

आर्सेनिक : वुड प्रेजेरवेशन (लकड़ी का संरक्षण) और विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों में इसका प्रयोग किया जाता है। सर्किट बोर्ड, एलसीडी व कंप्यूटर चिप में इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह पानी में मिलकर जब मानव शरीर में पहुंचता है तो स्किन और किडनी पर बुरा असर बड़ता है।

बेरिलियम : इसका प्रयोग एरोस्पेस इंडस्ट्री, रॉकेट की नोजल औरक टेलीकम्युनिकेशन इंडस्ट्री में होता है। इससे श्वसन संबंधी समस्याएं हो सकती है।

क्या है रेडियो एक्टिविटी
१८९६ में फ्रेंच वैज्ञानिक हेनरी बेकरल ने पाया कि यूरेनियन और यूरेनियम लवणों से कुछ अदृश्य विकिरण स्वत: उत्सार्जित होते रहते हैं। ये विकिरण अपारदर्शी पदार्थों जैसे-कागज आदि को बेधने की क्षमता रखते हैं तथा फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करते हैं। इन विकिरिणों को रेडियोऐक्टिव किरणें या बेकरल के नाम से बेकरल किरणें कहा गया तथा पदार्थों के इस गुण को रेडियोएक्टिविटी कहा गया। ऐसे पदार्थों को जो रेडियोएक्टिव किरणें उत्सर्जित करते हैं रेडियोएक्टिव पदार्थ कहा गया। ये हैं यूरेनियम, रेडियम, प्लूटोनियम, थोरियम और आर्सेनिक आदि।

अल्फा, बीटा और गामा
१९०२ में जेम्स रदरफोर्ड ने रेडियोएक्टिव पदार्थ से उत्सर्जित किरणों का अध्ययन किया और उन्होंने पाया कि ये किरणें तीन प्रकार की होती हैं। विद्युत क्षेत्र में जो किरणें ऋणात्मक प्लेट की ओर मुड़ती हैं वे अल्फा किरणें कहलाती हैं। जो किरणें धनात्मक प्लेट की ओर आकर्षित होती हैं वे बीटा किरणें कहलाती हैं। तीसरे प्रकार की किरणें सीधे बिना विक्षेपित हुए निकल जाती हैं उन्हें गामा किरणें करते हैं।

रेडियम, यूरेनियम, प्लूटोनियम और आर्सेनिक का प्रयोग परमाणु हथियारों को बनाने के लिए किया जाता है, इसलिए ये बाजार में उपलब्ध नहीं हैं। मर्करी पर अब प्रतिबंध लग चुका है लेकिन कोबाल्ट का इस्तेमाल अभी भी दुनिया में विभिन्न कामों में रहा है।

कोबाल्ट ६०
'कोबाल्ट ६०Ó कोबाल्ट का एक रेडियोएक्टिव आइसोटोप है। इसका प्रयोग रासायनिक प्रतिक्रियाओं, विभिन्न चिकित्सा संबंधी कार्यों, औद्योगिक रेडियोगा्राफी, फूड प्रोसेसिंग आदि कार्यों में होता है। विभिन्न अस्पतालों में रेडियोथेरेपी के लिए विकिरण के स्त्रोत के रूप में प्रयोग होता है। कोबाल्ट ६० एक रेडियो आइसोटोप थरमोइलेक्ट्रिक जेनरेटर के लिए एक प्रभावशाली हीटर का काम करता है लेकिन आमतौर पर इसका इस्तेमाल २३८पीयू के रूप में होता है। हालांकि इसकी शक्ति लगभग १० सालों के बाद समाप्त हो जाती है। कोबाल्ट ६० की एक्सरे उर्जा को अवशोषित करना काफी मुश्किल होता है। कोबाल्ट ६० की गामा विकिरणें के संपर्क में आने से कैंसर हो सकता है। मानव शरीर में इसके कुछ हिस्से रक्त और टिश्यू में अवशोषित होकर लिवर, किडनी और हड्डियों को नुकसान पहुंचाते हैं।