Sunday, June 12, 2016

बारिश, बच्चे और बिंदासपन


बारिश में इंडिया गेट पर नहाते चड्डी पहलवानों की तस्वीरें देखते-देखते पक गया था. इसलिए सोचा कि इस बार अपने मोहल्ले के नन्हें हौनहारों का फोटोशूट करूं. वैसे भी विरोध-प्रदर्शन से खौफ खाई सरकार ने रायसीना हिल्स पर शहीदों की याद में बने इस स्मारक की सुरक्षा इतनी बढ़ा दी है कि आम आदमी के लिए फोटोग्राफी तो दूर, देर शाम तक रुकना भी मुनासिब नहीं. बंदूक ताने जवान लड़कियों की हिफाजत के लिए नहीं, विरोध और बगावत के स्वर फूटने से रोकने के लिए खड़े रहते हैं. बेचारे फेरीवालों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. सैर-सपाटे के मजे लेने वाले कम हुए, तो उनकी कमाई की भी वाट लग गई.

खैर, मैं अभी अपनी कल्पना को इस बरस के मानसून की पहली झमाझम बारिश और उसे ओढ़ने की कोशिश करने वाले लिटिल चैंप्स के दायरे में ही बांधना चाहूंगा. बचपन में हम भी ऐसे मौकों पर खुद को भिगोने से रोक नहीं पाते थे. लेकिन पहली बारिश में मम्मी की पिटाई के डर से मन को मसोसना पड़ जाता था, क्योंकि उनके मुताबिक पहली फुहारें सेहत के नुकसानदायक होती हैं.


लेकिन नई पीढ़ी की मम्मियों ने अपने बच्चों पर ऐसी कोई बंदिशें नहीं लगा रखीं. तो इस बार जब बादल जबरदस्त गरजे और झमाझम बरसे, बच्चे भी घरों से निकल पड़े. हालांकि ये बिंदासपन अब सिर्फ निम्न-मध्यमवर्ग या मध्यमवर्ग की ही जागीर रह गया है. उच्च मध्यमवर्ग और उच्च वर्ग और ऐसी ही स्वघोषित रईस लोगों की दुनिया में ये शान के खिलाफ है. मैं मानता हूं उनकी किस्मत में ये लुत्फ नहीं.

मोटी-मोटी बारिश की बूंदें जैसे ही तड़ातड़ जमीन पर पड़ीं, हमेशा की तरह बच्चों की खुशी की चाशनी से लिपटी आवाजें आने लगी. चंद पलों में वह अपने-अपने अंडरवियरों का ब्रांड दिखाते नजर आए. ये सब इतना तेजी से हुआ कि जैसे वह घरों में नंगे ही बैठे हों. सब अपने-अपने लंगोटिया यारों को घरों से बुलाते नजर आए. AC की एसी की तैसी के नारे होठों में दबाए इन बच्चों के मुस्कान और सुकून से भरे चहरों ने इन लम्हों को कैमरे में कैद करने के लिए मजबूर कर दिया.


आनंद पर्वत में सबसे नीचे की इस गली में ऊपर की उटपटांग और तंग गलियों का पानी जिस तेजी से आता है, कई बार उसमें लोगों की चप्पलें बह जाती है. जमीन पर बहने वाले इन झरने की तेज धार में बारिश के कूल-कूल पानी के संग ऊपरी इलाके की जाम नालियों और गटरों का पानी भी साथ हो लेता है. लेकिन निचले इलाके में बारिश का मैक्सिमम रेप करने की चाहत में गलियों में उतरे बच्चों के लिए तो ये मजा दुगना वाली चीज होती है. तेज धारा की दिशा के उलट किक मारने और उसमें छई-छप्पा-छई, छपाक-छई करने में ही उनका दिल गार्डन-गार्डन होता है. हम तो मम्मियों और ट्यूशन वाली दीदीयों की चेतावनियों को भूलकर अपनी कॉपियों के पेज फाड़कर कश्ती बनाया करते थे और उसे अनजान मंजिल तक पहुंचाने की कोशिश करते थे. लेकिन इन मॉर्डन छोटूओं में कोई इतना टैलेंटेड नहीं. कश्ती ही नहीं, रॉकेट, हवाई जहाज, गुलाब का फूल, पतंग जैसी कई चीजें ये बनाते ही नहीं.


जगजीत साहब का वही गीत याद आ रहा था... ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, पर लौटा दो मुझको वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी...






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