Thursday, November 20, 2008

" ओबामा बनाम विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र "



ओबामा की जीत ने साबित कर दिया है कि हमारा लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र जरूर हो सकता है लेकिन अमेरिका का लोकतंत्र सर्वश्रेष्ट लोकतंत्र है। ओबामा की जीत वंशवाद के ऊपर लोकतंत्र की जीत है। भारतीय राजनीति में जिस तरह गाँधी वंशवाद नज़र आया उसी तरह अमेरिका की राजनीति में भी हुआ और क्लिंटन वंशवाद नज़र आया। लेकिन ओबामा की जीत ने इस प्रवृति पर रोक लगा दी।ओबामा की जीत से अब लगता है की भारत में मायावती भी प्रधानमंत्री बन सकती है अब विभिन्न उपेक्षित समुदायों, वर्गों, और स्थानीय पार्टियों में उत्साह आ गया है और वे भी ओबामा की तरह चेंज का अभियान छेड़ना चाहेगे।

भारत में पिछले १० सालो में यही देखने में आया है की कोई भी व्यक्ति अपनी पहचान और वंश के आधार पर वोट खीचना चाहता है वह इस के आधार पर वोट नही मांगता है की उसने क्या किया है। बल्कि इसके आधार पर मांगता है की वह अमुक परिवार में पैदा हुआ। वे यहाँ कहते है की हिंदू, यादव, जात या दलित हु। बदले में दलित भी मायावती को इसलिए नही देंगे की उसने कितना काम किया है। या बल्कि इसलिए देंगे की वह दलित है।

मुलायम सिंह को भी पिछडो के वोट इसलिए मिलेंगे की वे भी इनमे से ही आते है।बीजेपी आतंकवाद को इसलिए मुद्दा नही बनाती की वह बहुत गंभीर समस्या है बल्कि इसलिए बनाती है इससे हिन्दुओ के अन्दर मुस्लिम विरोधी भावना भड़के। मुस्लिम नेता मुस्लिमो की उपेक्षा की बात करने लगते है।लेकिन ओबामा की जीत,पहचान या जाती पर नही टिकी है। ओबामा जन्म से कोई अश्वेत अमिरिका नही था। उसके पिता केन्यन थे और माता श्वेत अमेरिकी थी पिता की मृत्यु के बाद ओबामा को उसके उसके दादा -दादी अपने साथ ले आए। ओबामा की शादी एक अश्वेत अमेरिकी से हुई और शादी के बाद ही उन्होंने एक अश्वेत अमेरिकी होने की शक्सिअत अख्तियार की।

ओबामा ने मायावती, मुलायम, बल ठाकरे की तरह चुनाव की लडाई नही लड़ी। एक अश्वेत की तरह नही बल्कि एक अमेरिकन की तरह चुनाव लड़ा। हम तो यह सोच भी नही सकते की मायावती चुनाव अभियान के दोरान दलितों को लालच wale वादे नही करेंगी या ठाकरे महाराष्ट्री अस्मिता की बात नही करेगे। मुस्लिम नेता इस्लाम के अस्तित्व को खतरा होने की बात नही करेगे। जबकि ओबामा ने अपने अभियान में ओ अश्वेत लोगो की इस तरह चापलूसी नही की उन्होंने तो एक अमिरिकान्म की तरह चुनाव लादे और अमेरिका में चंगे का नारा लगातर लगते विश्व्यापी चंगे कर दिया।

Wednesday, November 19, 2008

आख़िर कहा कमी है?



भारत के वंचित, उपेक्षित वर्ग कामना करने लगे है कि जिस तरह अश्वेत ओबामा ने सत्ता हासिल की उसी तरह वे भी भारत की सत्ता तक पहुचेंगे। लेकिन भारत और अमिरिका की समाज में जमीं आसमान का अन्तर है। आख़िर क्या फर्क है, हमारे और उनके मुख्या राजनेताओ में। ओबामा और मक्गैन जहाँ अपनी बात को कहने की लिए और मुश्किलें से मुश्किल सवाल का अच्छा से अच्छा उत्तर देने के लिए हमेशा मिडिया से बात करने के अवसर पाने की ताक में रहते है और उसकी तलाश करते है वहीदूसरी और हमारे नेता अपने आप को मडिया से बचते फिरते है और उसकी उपेक्षा करते है उनके व्यवहार से ऐसा महसूस होता है की उनके पा छपने के लिए बहुत कुछ है।


एक राज्यनेता को हिलकर लोगो से समस्याओ के बरी में बात करना चाहिए और उन समस्याओ स लड़ने के तर्कों को जनता के बीच रखना चाहिए। अगर कोई राजनेता बड़ी आसानी से और प्रभावी होकर मीडिया का सामना करता है तो वह जनता के बीच अपनी जगह बनने में सफल होता है परन्तु जो राजनेता मीडिया से बचता फइर्ता है तो उसे मिदा और जनता की आलोचनाओ विरोध और और शक के दायरे में आ जाता है।


वह के नेताओ ने अपने चुनावी अभियान के जरिये श्वेत-अश्वेत के फर्क को कम किया। यदि हम सत्ता के सर्वोच पदों के अकंशी भारतीय राजनेताओ को देखे तो समाज को खाचो में विभाजित करते नज़र आयेगे। हमारे राजनेताओ को अंधिकांश समयअपनी कुर्सी बचने को अलग अलग हिस्सों में बाँट कर उसका घ्रुविकर्ण करनी में निकल जाता है।



Tuesday, November 11, 2008

मुद्दा चला महाराष्ट्र बनाम बिहार की ओर!

बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व कर रहे जेडीयू के संसद ने जिस तरह इस्तीफा दिया और राहुल राज की मौत की गुत्थी से ऐसा लगता है की यह मुद्दा अब महाराष्ट्र बनाम उत्तर भारत न रहकर महाराष्ट्र बनाम बिहार हो गया है। बिहार के राजनितिक दलों में वोट बैंक पर कब्जा करने के लिए इस्तीफा देने की जिस तरह की होड़ लगी हुई है उससे एक सवाल यह जरुर उठता है की यदि इस्तीफे की इसी तरह की राजनिति महाराष्ट्र के राजनितिक दल भी शुरू कर दे तो क्या होगा? हालाकि इस विचित्र होड़ के पीछे वोट बैंक की राजनितिक ही नही बल्कि केन्द्र सरकार और महाराष्ट्र राज्य सरकार का नाकारापन भी काफी हद तक जिमेदार है।

यह निराशाजनक बात है की बिहार के लिए राजनितिक दलों में होड़ सी मच गई है की कौन जनता का ज्यादा हितैषी है यदि संसद अथवा विधानसभा से त्यागपत्र देने की होड़ शुरू हो जायेगी तो फिर संघीय ढांचे को मजबूती नही दी जा सकती।

Thursday, November 6, 2008

कैसी रही दिवाली !


ये तो कहा जा रहा रहा है की आर्थिक मंदी के कारण भारतीयों की दिवाली फीकी रही लेकिन मुझे लगता है की चीन की नही, क्योकि भारतीय बाज़ार में चीन के बम पटाखे और अन्य चीजे जमकर बिकी।

वेलकम

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