Tuesday, May 3, 2016

मुद्दा सियाचिन का

सियाचिन में तैनात ज्यादातर सैनिक लड़ाई से नहीं, बल्कि ठंड और खराब मौसम की वजह से मारे जाते हैं. यहां सेना के रख-रखाव में दोनों देशों के करोड़ों रुपये खर्च हो जाते हैं.


हाल में सियाचिन ग्लेशियर के गयारी सेक्टर में पाकिस्तान का सैन्य अड्डा हिमस्खलन की चपेट में आया. इस भीषण हिमस्खलन में 124 पाकिस्तानी सैनिक और 11 नागरिक जिंदा दब गए. सियाचिन ग्लेशियर में भारत और पाकिस्तान ने अपने-अपने हजारों सैनिक तैनात कर रखे हैं, जिन्हें यहां कड़ाके की ठंड और आए दिन आने वाले बर्फीले तूफानों से जूझना पड़ता हैं. समय समय पर दोनों देशों की तरफ से सियाचिन से सेना को वापस हटाने की मांग उठती रही है. लेकिन 7 अप्रैल, 2012 को हुए भयंकर हादसे के बाद यहां से सेना वापस बुलाने का मुद्दा और भी गर्मा गया है.

सियाचिन ग्लेशियर

कश्मीर में कराकोरम रेंज स्थित सियाचिन ग्लेशियर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गैर ध्रुवीय ग्लेशियर है. ये दुनिया के सबसे ऊंचा रणक्षेत्र है. ग्लेशियर की समुद्र तल से ऊंचाई 18,875 फीट है. सर्दियों में यहां औसतन 35 फीट तक की बर्फबारी होती है और तापमान यहां -50 डिग्री से भी नीचे चला जाता है. स्थिति इतनी खराब है कि यहां ज्यादातर सैनिक लड़ाई की बजाय ठंड और खराब मौसम की वजह से मारे जाते हैं. इतनी ऊंचाई पर तैनात इन सैनिकों के रख-रखाव में दोनों देशों के करोड़ों रुपये खर्च होते हैं.
जहां तक नाम की बात तो सियाचिन दो शब्दों से मिलकर बना है सिया और चुन. पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टीस्तान क्षेत्र में बोले जाने वाली भाषा बाल्टी में सिया शब्द का अर्थ गुलाब की प्रजाति के पौधे से होता है जो कि इस क्षेत्र में पाया जाता है. चुन का मतलब किसी चीज के बहुतायात में पाए जाने से होता है.,

सीमा विवाद और मौजूदा स्थिति

बर्फ़ से ढका 70 किलोमीटर लंबा ये ग्लेशियर सामरिक रुप से भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के लिए बेदह महत्वपूर्ण है. दरअसल 1972 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद जब शिमला समझौता हुआ तो सियाचिन के एनजे-9842 नामक स्थान पर युद्ध विराम की सीमा तय हो गई. एनजे-9842 भारत-पाक युद्ध विराम सीमा का सबसे अस्पष्ट प्वाइंट है. ये युद्ध विराम सीमा ही एलओसी यानी लाइऩ और कंट्रोल है. लेकिन इस समझौते के मुताबिक तय हुए नक्शे में इस क्षेत्र की स्थिति अस्पष्ट ही रही. संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने भी मान लिया कि इस बंजर और बेहद ठंडे इलाके को लेकर भारत-पाक में कोई विवाद नहीं होगा.

1984 में पाकिस्तान सेना ने इस इलाके में अपना दबदबा बढ़ाना चाहा था. तब भारत ने 1984 में ही ऑपरेशन मेघदूत के जरिए अधिकांश सियाचिन ग्लेशियर को अपने कब्जे में ले लिया था. तब से दोनों देशों ने ही वहां अपने स्थाई सैन्य अड्डे बनाकर हजारों सैनिक तैनात कर रखे हैं. 1988 में पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो सियाचिन आईं. वह दोनों देशों में यहां आने वाली पहली प्रधानमंत्री थीं.

कारगिल युद्ध से पहले तक यहां होने वाली व्यर्थ की जान-माल की हानि के चलते भारत और पाकिस्तान दोनों अपनी सेना को यहां से हटाना चाहते थे. समय समय पर दोनों देशों की तरफ से सियाचिन से सेना को वापस हटाने की मांग उठती रही. लेकिन 1999 में कारगिल युद्ध के बाद भारत ने यहां से सेना हटाने की योजना त्याग दी. वर्ष 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और अगले अगले साल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यहां का दौरा किया. सितंबर, 2007 से भारत ने यहां अपने पर्वतारोहण और ट्रैकिंग के अभियान भेजने शुरू कर दिए.