Tuesday, March 20, 2012

जानें अरब लीग के बारे में



अरब लीग दक्षिण पश्चिम एशिया, उत्तर और उत्तर-पूर्व अफ्रीकी देशों का एक क्षेत्रीय संगठन है. इसका गठन 22 मार्च 1945 को मिस्र का राजधानी काहिरा में 6 संस्थापक राष्ट्रों ने मिलकर किया था. ये संस्थापक सदस्य देश हैं. मिस्र, इराक, ट्रांसजार्डन (जिसका नाम 1949 में बदलकर जार्डन हो गया), लेबनान, सऊदी अरब और सीरिया. लीग का मुख्यालय काहिरा में है और इसकी आधिकारिक भाषा अरबी है. वर्तमान में अरब लीग के प्रमुख नबील अल-अरबी हैं.
सदस्य देश
आज इस लीग में कुल 21 सदस्य हैं. पिछले साल नवंबर माह में अरब लीग में से सीरिया को निलंबित कर दिया गया. अरब लीग ने अपने काम-काज में सीरिया की भागेदारी पर रोक लगा दी है और कहा है कि ये प्रतिबंध तब तक लागू रहेंगे जब तक सीरिया शांति प्रस्ताव को नहीं मानता. इन देशों के अलावा पांच अन्य पर्यवेक्षक देश भी हैं.
सदस्य देशों के नाम : अल्जीरिया, बहरीन, कोमोरोस, जिबूती, मिस्र, इराक, जोर्डन, कुवैत, लेबनान, लीबिया, मारितानिया, मोरक्को, ओमान, पेलेस्टाइन, कतर, सऊदी अरब, सोमालिया, सूडान, ट्यूनीशिया, संयुक्त अरब अमीरात, यमन
पर्यवेक्षक देश : इरीट्रिया, ब्राजील, टर्की, वेनेजुएला और भारत.
लीग का मकसद
अरब लीग का सबसे अहम मकसद सदस्य देशों के बीच आपसी समन्वय और सहयोग बनाए रखना है. इसका उद्देश्य है कि ये सभी अरब देश एक दूसरे की स्वतंत्रता और संप्रभुता का सम्मान करें और इसे बनाए रखें. साथ ही एक दूसरे के हित के लिए पारस्परिक सहयोग की स्थिति बनाए रखें.
सीरिया में संकट और लीग
अरब लीग सीरिया में आम लोगों का खून खराबा रोकने के लिए प्रयासरत है. हाल में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अरब लीग समर्थित उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसमें सीरिया में जारी हिंसक हमलों की निंदा की गई है और सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद से पद छोड़ने का आग्रह किया गया है. भारत ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि वह बल प्रयोग के सख्त खिलाफ हैय. इससे पहले भी लीग ने पिछले साल नवंबर महीने में सीरिया को सदस्यता से निलंबित कर दिया और यहां के राष्ट्रपति को हिंसा रोकने की चेतावनी भी दी थी. लीग संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को सीरिया में साझा शांति सेना मिशन स्थापित करने के लिए भी कह रही है.

क्या है एनसीटीसी | आतंक के खिलाफ कानून


इन दिनों एनसीटीसी को लेकर केंद्र और राज्यों सरकारों के बीच ठनी हुई है. इसका विरोध करने वाले राज्यों में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब, छत्तीसगढ, कर्नाटक, त्रिपुरा और उत्तराखंड शामिल हैं. इन राज्यों का कहना है कि इसके गठन से देश के संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचेगा.

एनसीटीसी

एनसीटीसी का पूरा नाम है नैशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर यानी राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र. नैशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर (एनसीटीसी) एक ऐसी शक्तिशाली एजेंसी होगी जो देश भर में आतंकवादी खतरों से जुड़ी सूचनाओं पर जांच-पड़ताल करेगी. ये सेंटर आधिकारिक रूप से एक मार्च 2012 से कार्य शुरू करेगा. इसे अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट (यूएपीए) कानून के तहत शक्तियां हासिल हैं, जिसके तहत केंद्रीय एजेंसियों को आतंकवाद संबंधित मामलों में गिरफ्तारी या तलाशी के अधिकार हैं.

ये केंद्रीय एजेंस आतंकवाद से जुड़े किसी भी मसले में देशभर में कहीं भी जाकर तलाशी ले सकती हैं और गिरफ्तारी कर सकती हैं. जांच के दौरान ये राज्य की पुलिस को भरोसे में लेंगी लेकिन राज्य सरकार और राज्य पुलिस से इजाजत लेना जरूरी नहीं होगा.

रिपोर्ट करेंगी राज्यों की पुलिस

एनसीटीसी के तहत राज्यों की पुलिस के अलावा एनआईए और एनएसजी जैसी एजेंसी होंगी. ये सारी एजेंसियां आतंकवाद से जुड़े मामलों में एनसीटीसी को रिपोर्ट करेंगी.

एनसीटीसी आईबी के तहत आएगा, जो कि सीधे गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करेगा. इसका प्रमुख एक डायरेक्टर होगा जोकि आईबी में अतिरिक्त निदेशक रैंक का होगा. एनसीटीसी के तीन हिस्से होंगे. इसके तीन प्रभाग होंगे और हर प्रभाग का प्रमुख आईबी के संयुक्त निदेशक रैंक का अधिकारी होगा. ये प्रभाग खुफिया जानकारी एकत्र करने और उन्हें वितरित करने, विश्लेषण और परिचालन से जुडे होंगे. एनसीटीसी में आईबी में काम कर रहे लोगों या आईबी में सीधे भर्ती हुए लोगों को शामिल किया जाएगा. रॉ, जेआईसी, सेना इंटेलिजेंस डाइरेक्टोरेट, सीबीडीटी और मादक द्रव्य नियंत्रण ब्यूरो जैसी अन्य एजेंसियों के अधिकारियों को भी इसमें लिया जाएगा.

क्यों कर रहे हैं राज्य विरोध

कई राज्य सरकारों ने केंद्र को एनसीटीसी की कार्यप्रणाली, शक्तियों और कर्तव्यों पर पुनर्विचार करने और उसे वापस लेने का सुझाव दिया है. दरअसल एनसीटीसी को बगैर राज्य सरकार और राज्य पुलिस की अनुमति लिए वहां तलाशी और गिरफ्तारी करने का अधिकार दिया गया है. राज्य की पुलिस और अन्य खुफिया एजेंसियों को आतंक से जुड़ी सभी गोपनीय जानकारी एनसीटीसी के साथ साझा करनी होगी. बस यही बात राज्यों को नागवार गुजर रही है और उन्हें ये अपने क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप दिख रहा है.