Sunday, January 30, 2011
भारत में जल विवाद
हाल में कृष्णा नदी के जल बंटवारे का निपटारा हुआ। लेकिन इस तरह के विवाद और भी कई राज्यों के बीच चल रहे हैं। जानते हैं इनके बारे में..
कुछ दिनों पहले कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण ने कृष्णा नदी के जल बंटवारे पर अंतिम फैसला सुनाया। फैसले के मुताबिक, आंध्र प्रदेश को सबसे ज्यादा १००१ मिलियन घन फीट (टीएमसी) पानी मिलेगा। कर्नाटक को ९११ और महाराष्ट्र को ६६६ टीएमसी पानी मिलेगा। दरअसल यह नदी इन तीनों राज्यों से होकर निकलती है। महराष्ट्र के महाबलेश्वर से निकलने और राज्य में ३०३ किलोमीटर, उत्तरी कर्नाटक से ४८० और सबसे अधिक आंध प्रदेश से १३०० किलोमीटर बहती है। नदी के इस स्वरूप और दिशा के कारण यह तीनों राज्यों में जल के बटवांरे को लेकर विवाद का विषय बनी हुई थी। विवाद सुलझाने के लिए भारत सरकार ने इनर स्टेट वाटर डिसप्यूट एक्ट (१९५६) के तहत १९६९ में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज आर.एस.बचावत के नेतृत्व में कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण गठित किया। हाल ही जो रिपोर्ट आई, वह द्वितीय कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा पेश की गई, जिसका गठन सितंबर २००३ में किया गया था।
कावेरी जल विवाद
कावेरी नदी के जल के बंटवारे को लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक में काफी दिनों से विवाद है। इस विवाद की शुरुआत १८९२ व १९२४ में मद्रास प्रेजीडेंसी और प्रिंसली स्टेट ऑफ मैसूर के बीच हुए समझौतों से हुई। लेकिन वर्तमान कर्नाटक इस समझौते से बेहद असंतुष्ट है और समझौतों को मद्रास प्रेजीडेंसी के हक में मानता है। कर्नाटक चाहता है कि पुराने समझौते की शर्तों बदली जाएं और पानी का बराबर बंटवारा हो। लेकिन वहीं तमिलनाडु का कहना है कि उसने ३० लाख एकड़ जमीन विकसित कर चुका है। राज्य के लाखों किसानों की जीविका उसी जल पर निर्भर है। झगड़े को निपटाने के लिए भारत सरकार ने १९९० में एक ट्रिब्यूनल गठित किया, जिसने ५ फरवरी, २००७ को अपना फैसला सुनाया। तय हुआ कि सालाना १२ किमीश् पानी तमिलनाडु को, ७.६ किमीश् कर्नाटक को, ०.८ किमीश् केरल और ०.२ किमीश् पांडुचेरी को मिलेगा।
सतलुज-यमुना नहर विवाद
सतलुज यमुना लिंक कनाल के निर्माण का उद्देश्य हरियाणा को रावी व्यास नदी के पानी का उसका हिस्सा मुहैया कराना है। इस नहर से भारत के पूर्वी तट से पश्चिम तट का दूरी कम हो जाएगा, जिसका सीधा फायदा व्यापार में मिलेगा। नहर दिल्ली के समीप स्थित पल्ला गांव के करीब शुरू हुई। इससे सिंधु बेसिन का ३.५ मिलियन एकड़ फीट हिस्सा हरियाणा को स्थानांतरित किया जाना था। हालांकि हरियाणा ने अपना हिस्सा पूरा कर दिया है, लेकिन पंजाब इस निर्माण के खिलाफ है। पंजाब विधानसभा में पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट २००४ पास कर समझौते को खारिज कर दिया है। ऐसे में पंजाब में नहर का निर्माण न हो पाने के चलते विवाद बरकरार है।
वंसधारा जल विवाद
उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के बीच बहने वाली इस नदी को लेकर विवाद की वजह आंध्र का उस पर बांध बनाना है। इस वजह से कटरागढ़ पर बाढ़ से प्रभावित रहने लगा। इससे आसपास का जलस्तर कम होने लगा। इस मुद्दे पर दोनों राज्यों के बीच कई बार बातचीत हो चुकी है। इसी तरह गोवा और कर्नाटक के बीच मांडवी/महादयी को लेकर विवाद है। पंजाब और हरियाणा के बीच भी रावी-व्यास को लेकर काफी पुराना जल विवाद है।
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